कलम की ताकत, पत्रकारिता और देशद्रोह ग़द्दारी ?

 


 



देशद्रोह गद्दारी के धंधे में कोई मंदी नहीं आई है...
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि दुनिया के किसी अखबार में लिखे गए एक लेख के लिये पत्रकार को 1करोड़ 50लाख रूपये दिये जाएं। विशेषकर तब जबकि उस लेख का विषय किसी विशिष्ट वैज्ञानिक अनुसंधान अविष्कार पर उस अविष्कार के जनक द्वारा स्वयं ना लिखा गया हो.? 
इसके बजाय 1 करोड़ 50 लाख रूपये प्रति लेख की दर से लिखे गए और अमेरिकी अखबार में छापे गए उस लेख की विषयवस्तु कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा किये जा रहे #तथाकथित अत्याचार एवं भारतीय सरकार द्वारा कश्मीर में लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं मानवाधिकारों के तथाकथित हनन की तथ्य/साक्ष्य रहित कहानी थी। पाकिस्तान ने UNHRC में भारत के खिलाफ प्रस्तुत किये गए Dossier में उस पूरी रिपोर्ट को भी ज्यों का त्यों शामिल किया था। 
3 दिन पूर्व अरनब गोस्वामी ने अपने कार्यक्रम में जब उपरोक्त रहस्योदघाटन किया तो उसने बताया कि यह लेख उसी भारतीय पत्रकार ने लिखा था जो 2G कांड में दलाली के राडिया टेप के लीक होने पर कुख्यात हुई थी तथा जिसकी तारीफ पाकिस्तान के सबसे बड़े आतंकी आका हाफ़िज़ सईद ने की थी। हालांकि अरनब ने नाम नहीं लिया था लेकिन हाफ़िज़ सईद को पाकिस्तानी मीडिया के कैमरों के सामने बरखा दत्त और उसकी पत्रकारिता की मुक्त कंठ से तारीफ करते हुए पूरा देश देख सुन चुका है तथा 2G कांड की दलाल सरगना नीरा राडिया के साथ उसकी सेटिंग की बातचीत भी अनेक यूट्यूब चैनलों पर मौजूद है जिसे करोड़ों लोग सुन चुके हैं। ज्ञात रहे कि भारत में पत्रकारिता कर रहे 95% पत्रकारों के जीवन भर का वेतन 1करोड़ 50लाख रुपये नहीं होता है।


केवल उपरोक्त एक उदाहरण ही पर्याप्त या अपवाद नहीं है। अरनब ने उसी कार्यक्रम में यह भी खुलासा किया था कि अमेरिकी अखबारों में भारत विरोधी लेख लिखने वालों को प्रति लेख औसतन 40-45 हज़ार डॉलर पारिश्रमिक मिलता है। अर्थात भारतीय मुद्रा में 30 से 35 लाख रू प्रति लेख।
प्रमुख एवं राष्ट्रीय स्तर के बड़े भारतीय समाचार पत्रों द्वारा सम्पादकीय पृष्ठों पर प्रमुखता से प्रकाशित किये जाने वाले लेखों के लेखकों की दी जाने वाली राशि से क्योंकि भलीभांति परिचित हूं अतः यह कह सकता हूं कि अखबारों में लेख लिखकर 30 से 35 लाख रूपये कमाने के लिए भारतीय लेखकों/पत्रकारों/विचारकों/चिंतकों को कई जन्म लेने पड़ेंगे। जबकि स्वयं को पत्रकार कहने वाले देशद्रोही गद्दार भारत के खिलाफ केवल एक लेख लिखकर इतनी रकम कमाते हैं।
दरअसल सच तो यह है कि उन अखबारों द्वारा भी अन्य लेखकों को इतना अकल्पनीय पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है। यह सारा खेल भारत विरोधी विशेषकर पाकिस्तानी एजेंसियों द्वारा खेला जाता है।
इसीलिए मैंने शुरू में ही लिखा कि देशद्रोह गद्दारी के धंधे में कोई मंदी नहीं आई है।