महेंद्र सिंह टिकैत के हुक्के की गुड़गुड़ाहट से ही तय होती थी किसानों का भविष्य

नोएडा। ठेठ गंवई अंदाज में बाबा जब सड़क पर अपने किसान साथियों के साथ हुक्का लेकर बैठते  तो राजनीतिक गलियारों में माथे की सलवटे बढ़ने लगती। बाबा के हुक्के की गुडगुडाहट के बीच फैसला लिया जाता कि किसान इस बार किसके पक्ष में जाएगा।


कुछ तो ख़ास बात थी बाबा में कि उनकी एक आवाज पर हजारो किसान सड़क पर आ जुटते। चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के पश्चात हुए राजनितिक शून्य के पश्चात किसान बाबा में ही विश्वास करते थे।


हम बात कर रहे है किसान नेता और  भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष रहे स्व महेंद्र सिंह टिकैत की , जिन्हें लोग बाबा टिकैत और महात्मा टिकैत के नाम से भी बुलाते थे। बाबा  टिकैत पिछले क़रीब 25 सालों से किसानों की समस्याओं  के लिए संघर्षरत थे और विशेष कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानो में प्रसिद्ध थे।


महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गाँव में एक जाट परिवार में हुआ था।  1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था जिसमें मार्च 1987 में  प्रशासन और राजनीतिक लापरवाही से संघर्ष हुआ और दो किसानो और पीएसी के एक जवान की मौत हो गयी। इसके बाद टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गये। बाबा टिकैत की अगुवाई में आन्दोलन इस कदर मजबूत हुआ कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को खुद सिसौली ग्राम में आकर पंचायत को संबोधित करना पड़ा और किसानो को राहत दी गयी।



इस आन्दोलन के बाद बाबा टिकैत  की छवि मजबूत हुई और देशभर में घूम-घूम कर उन्होंने किसानो के हक़ के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया। कई बार राजधानी दिल्ली में भी धरने प्रदर्शन किये गये। हालाकि उनके आन्दोलन राजनीति से दूर होते थे।


टिकैत जाटों के रघुवंशी गौत्र से थे लेकिन बालियान खाप में सभी बिरादरियां थीं। टिकैत ने खाप व्‍यवस्‍था को समझा और 'जाति' से अलग हटकर सभी बिरादरी के किसानो के लिए काम करना शुरू किया। किसानो में उनकी लोकप्रियता बढती जा रही थी। इसी क्रम में उन्होंने 17 अक्‍टूबर 1986 को किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन 'भारतीय किसान यूनियन' की स्‍थापना की।


किसानो के लिए लड़ाई लड़ते हुए अपने पूरे जीवन में टिकैत करीब 20 बार से ज्यादा जेल भी गये। लेकिन उनके समर्थको ने उनका साथ हर जगह निभाया। अपने पूरे जीवन में उन्होंने विभिन्न सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज़ , मृत्युभोज , अशिक्षा और भ्रूण हत्या जैसे मुद्दों पर भी आवाज उठायी। बाबा टिकैत की पंचायतो और संगठन में जाति धर्म लेकर कभी भेदभाव नहीं दिखा। जाट समाज के साथ ही अन्य कृषक बिरादरी भी उनके साथ उनके समर्थन में होती थी। खाद पानी बिजली की समस्याओं को लेकर जब किसान सरकारी दफ्तरों में जाते तो उनकी समस्याओं को सरकारी अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते थे। टिकैत ने किसानो की समस्याओं को जोरदार तरीके से रखना शुरू किया।


1988 में दिल्ली में वोट क्लब में दिए जा रहे एक बड़े धरने को संबोधित करते हुए टिकैत  ने कहा था – “इंडिया वालों खबरदार, अब भारत दिल्ली में आ गया है।”


उनका हल्का सा इशारा चुनाव की दिशा बदल देता था।  इसी वजह से अधिकतर जनप्रतिनिधि बाबा के वहां हाजिरी देते थे। सियासी लोग उनसे करीबी बनाने का बहाना ढूँढ़ते। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर कई अन्य कद्दावर नेता भी बाबा के यहाँ आते रहते लेकिन उनके लिए किसानो की समस्याए और लड़ाई राजनीति से ऊपर रही। बाबा टिकैत किसानो की न सुनने वाले नेताओं के खिलाफ सीधे पैनी की ठुड्डी लगाने की बात करते। अपने अंतिम समय में जब उनका स्वास्थ्य बेहद ख़राब था तो खाप के खिलाप की गयी सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिपण्णी पर उन्होंने कहा था –
'इल्‍जाम भी उनके, हाकिम भी वह और ठंडे बंद कमरे में सुनाया गया फैसला भी उनका…..लेकिन एक बार परमात्‍मा मुझे बिस्‍तर से उठा दे तो मैं इन्‍हें सबक सिखा दूंगा कि किसान के स्‍वाभिमान से खिलवाड़ का क्‍या मतलब होता है…..।'


उनका कहना था कि खाप पंचायते किसानो के हक़ की लड़ाई लडती है, उनकी मांग उठाती है , और राजनितिक कारणों से उनकी आवाज को दबाया जा रहा है।


किसानों के ये नेता अपने अंतिम समय तक किसानो के हितो के लिए संघर्ष करते रह। बिमारी की अवस्था में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उन्हें सरकारी खर्च पर दिल्ली में इलाज कराने को कहा तो वो ठहाके लगाकर हंस पड़े और प्रधानमंत्री जी से कहा कि उनकी हालत ठीक नहीं है और पता नहीं कब क्या हो जाए, लेकिन उनके जीते जी अगर केंद्र सरकार किसानो की भलाई के लिए कुछ ठोस कर दे तो आखिरी समय में वह राहत महसूस कर सकेंगे और उन्हें दिल से धन्यवाद देंगे।


15 मई 2011 को 76 वर्ष की उम्र में केंसर के कारण महेंद्र सिंह टिकैत जी की मृत्यु  हो गयी और किसानो की लड़ाई लड़ने वाला ये योध्दा हमेशा के लिए शांत हो गया।  लेकिन अफ़सोस कि अपने जीवन भर किसानो के हक़ की लड़ाई लड़ने वाले टिकेत के जाने के बाद भी सरकारे किसानो के लिए ठोस कदम नहीं उठा पायी।


आज किसानों के अनेक नेता पैदा हो गए हैं, जो राजनीति की चाशनी में डूबकर किसानों की मसीहा बनने के लिये उतावले नजर आते हैं। बड़े- बड़े साधनों के बाद भी आज के किसान नेता किसानों के हक, अधिकार और सम्मान के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं करते, सिर्फ किसानों को छलते हैं ,और मोटी दलाली का घिनौनी आडम्बर रचते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह व महेंद्र सिंह टिकैत जैसे किसान  नेता की जरूरत महसूस की जा रही है, लेकिन फिलहाल वह दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है!