सूर्योपासना का सबसे बड़ा पर्व है छठ महापर्व
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छठ महापर्व कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि को सुख-समृद्धि, गुणवान पुत्र प्राप्ति, आरोग्यता, वा पुत्र को दीर्घायु रखने के लिए मनाया जाएगा। इसमें छठ देवी और भगवान सूर्य की आराधन करते हुए उपवास किया जाता है।
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या तालाब के किनारे छठ की पूजा की जाती है। वैसे, बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले के सुविख्यात सूर्यस्थल देव में पहली बार छठपर्व करने की बात कही जाती है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।
छठ मइया बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है तथा इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घ आयु का आशीर्वाद मिलता है।
शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में प्रियव्रत नाम के एक राजा थे, उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। राजा के कोई भी संतान नहीं थी, इसी कारण राजा -रानी बहुत दुखी रहते थे। एक बार उन्होंने संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप को उपाय बताने के लिए कहा , तब महर्षि कश्यप ने संतान हेतु उनके लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया, इस यज्ञ के पुण्य के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।
नौ महीने बाद जब रानी को संतान हुए तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात से राजा-रानी बहुत दुखी हुए और संतान शोक में राजा आत्म हत्या करने लगा। लेकिन तभी राजा को एक सुंदर देवी के दर्शन हुए।
उस देवी ने राजा को कहा कि हे राजन ! मैं लोगो को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करने वाली षष्टी देवी हूं। जो भी भक्त सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी मनोकामनाएँ अवश्य ही पूर्ण कर देती हूं। यदि आप लोग भी कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्टी को मेरी पूजा करोगे तो आपको निश्चय ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।
देवी के वचनो को सुनकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
फिर राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे श्रद्धा और विधि -विधान से पूजा की, जिसके कारण उन्हें एक सुंदर और गुणवान पुत्र की प्राप्ति हुई, उसी समय से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
छठ पूजा को लेकर कई पौराणिक , ऐतहासिक कथाएं प्रचलित हैं। हालांकि, माना जाता है कि महाभारत काल से छठ मां की पूजा की शुरुआत विधि-विधान से हुई।
एक कथा के अनुसार जब पांडव जुआ में कौरवो से अपना सारा राज हार गए, तब द्रौपदी ने छठ देवी जो सूर्य देव की बहन हैं का व्रत रखा था । इस ब्रत से छठ देवी के आशीर्वाद से द्रोपदी की मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों ने फिर से अपना राजपाट वापस ले लिया था।
मान्यता है कि चूँकि भगवान सूर्य देव और छठी देवी दोनों आपस में भाई बहन हैं इसलिए छठ पर्व के अवसर पर सूर्य देव की आराधना विशेष फलदायी कही गई है।
एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत काल में कुन्ती को दुर्वासा ऋषि ने वरदान दिया था उस वरदान की सत्यता को जानने के लिए जब कुंती कुंवारी थी तब भगवान सूर्य का आह्वान करके पराक्रमी पुत्र की इच्छा जताई। तब भगवान सूर्य ने कुंवारी कुंती को कर्ण जैसा पराक्रमी और दानवीर पुत्र दिया।
मान्यताओं के अनुसार तभी से कर्ण की तरह ही पराक्रमी पुत्र के लिए छठ पूजा सूर्य की आराधना के रूप में की जाती है।
इस सन्दर्भ में एक कथा यह भी है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम लंका पर आक्रमण कर रावण का वध कर अयोध्या आपस आये तो उन्होंने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान सूर्यदेव की उपासना करके उनसे आशीर्वाद मांगा ।
अपने राजा भगवान श्रीराम को सूर्यदेव की उपासना करते देखकर उनकी प्रजा ने भी षष्ठी का व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया। मान्यता है कि तभी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व मनाया जाता हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल कही गयी है। कहते है कि सूर्यपुत्र कर्ण जो बहुत बड़े दानी थे उन्होंने सबसे पहले कार्तिक शुक्ल की षष्टी को श्रेष्ठ वीर बनने के लिए भगवान सूर्य की पूजा की थी ।
कर्ण को भगवान सूर्य पर अटूट श्रद्धा थी वह सूर्य देव के बहुत बड़े भक्त थे और नित्य प्रात: कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे, इसी कारण से ही वो महान वीर, महान योद्धा कहलाये, और तभी से छठ पूजा में अर्घ्य दान की भी परंपरा चली आ रही है।
छठ पूजा 2019 की तारीख :
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31 अक्टूबर 2019- नहाय-खाय
1 नवंबर 2019- लोहंडा और खरना
2 नवंबर 2019- संध्या अर्घ्य
3 नवंबर 2019- सूर्योदय/ ऊषा अर्घ्य और पारण