आखिरकार नोएडा कमिश्नरी सिस्टम पर लगी मुहर, कमिश्नर को मिलती है मजिस्ट्रेट की पॉवर व अन्य अधिकार

नोएडा। प्रदेश में लखनऊ व गौतमबुद्धनगर में लंबे समय से उठ रही पुलिस के कमिश्नरी सिस्टम की मांग पर शनिवार को आखिरकार मुहर लग गई। यहां मुख्यमंत्री आवास पर शनिवार को हुई बैठक में सीएम योगी आदित्थनाथ ने डीजीपी ओपी सिंह और गृह विभाग के अफसरों के संग मंत्रणा करके लखनऊ और गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नर तैनात करने की तैयारी करने का निर्देश दिया है। इस संबंध में मंगलवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को पास किया जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ गजट नोटिफिकेशन के जरिए भी कमिश्नरी सिस्टम लागू करने का विकल्प सरकार के पास है। अब देखना है कि दोनों में से सरकार कौन सा विकल्प चुनती है।



लखनऊ के साथ गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नर तैनात करने के मामले में लगातार तीन दिन से कवायद जारी थी। गुरुवार रात डीजीपी ओम प्रकाश सिंह और अपर प्रमुख सचिव गृह अवनीश अवस्थी के साथ मुख्यंमत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर मंथन किया था। इसके बाद शुक्रवार को भी देर रात तक इस मामले पर मंत्रणा हुई। गृह विभाग, पुलिस विभाग और विधि विभाग के साथ मुख्यमंत्री कार्यालय के अफसरों के बीच  विचार-विमर्श किया गया। हर बिंदु पर चर्चा करने के बाद शनिवार सुबह इसको कैबिनेट में लाने का भी फैसला हो गया। 


भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के अंतर्गत जिलाधिकारी यानी डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस पर नियत्रंण के अधिकार भी होते हैं। इस पद पर आसीन अधिकारी IAS होता है। लेकिन पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू हो जाने के बाद ये अधिकार पुलिस अफसर को मिल जाते हैं, जो एक IPS होता है। यानी जिले की बागडोर संभालने वाले डीएम के बहुत से अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास चले जाते हैं।


दण्ड प्रक्रिया संहिता (CRPC) के तहत एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) को भी कानून और व्यवस्था को विनियमित करने के लिए कुछ शक्तियां मिलती है। इसी की वजह से पुलिस अधिकारी सीधे कोई फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, वे आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम या कमिश्नर या फिर शासन के आदेश के तहत ही कार्य करते हैं, लेकिन पुलिस कमिश्नरी प्रणाली में IPC और CRPC के कई महत्वपूर्ण अधिकार पुलिस कमिश्नर को मिल जाते हैं।


पुलिस कमिश्नर प्रणाली में पुलिस कमिश्नर सर्वोच्च पद होता है. ज्यादातर यह प्रणाली महानगरों में लागू की गई है। पुलिस कमिश्नर को ज्यूडिशियल पॉवर भी होती हैं। CRPC के तहत कई अधिकार इस पद को मजबूत बनाते हैं। इस प्रणाली में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस ही मजिस्ट्रेट पॉवर का इस्तेमाल करती है। एक हरियाणा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक पुलिस प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का अधिकार मिलने से अपराधियों को खौफ होता है। क्राइम रेट भी कम होता है।


हरियाणा में 3 महानगरों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू है। इन शहरों में एनसीआर (NCR) के गुरुग्राम, फरीदाबाद और चंडीगढ़ से लगा पंचकुला शहर शामिल है। हरियाणा पुलिस के एडीजी स्तर के एक अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि दिल्ली एनसीआर में आने वाले दूसरे राज्यों के महानगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। वहां देशभर के लोग रहने के लिए आते हैं।


वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक NCR के महानगरों में कई बड़ी कंपनिया और अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय भी हैं। ऐसे में आर्थिक अपराध के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। आए दिन वीआईपी लोगों का आना-जाना भी लगा रहता है। उनकी सुरक्षा और अवागमन से संबंधित कार्य भी रहते हैं। इसके अलावा रोजमर्रा की घटनाएं, यातायात संबंधी मामले भी भारी संख्या में आते हैं। ऐसे में एसएसपी या एसपी स्तर का अधिकारी पूरे जिले को नहीं संभाल सकता।


पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू होने से पुलिस को बड़ी राहत मिलती है। कमिश्नर का मुख्यालय बनाया जाता है। एडीजी स्तर के सीनियर आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाकर तैनात किया जाता है। महानगर को कई जोन में विभाजित किया जाता है। हर जोन में डीसीपी की तैनाती होती है। जो एसएसपी की तरह उस जोन को डील करता है। सीओ की तरह एसीपी तैनात होते हैं। जो 2 से चार थानों को डील करते हैं।


खास बात ये कि आर्म्स एक्ट के मामले भी पुलिस कमिश्नर डील करते हैं। इस तरह है महानगर की कानून व्यवस्था भी मजबूत होती है और नागरिकों को सुरक्षा का अहसास होता है। जो लोग हथियार का लाइसेंस लेने के लिए अवादेन करते हैं, उसके आवंटन का अधिकार भी पुलिस कमिश्नर को मिल जाता है। पुलिस कमिश्नर की सहायता के लिए ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर, असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर भी तैनात किए जाते हैं।


पूरे देश में पुलिस प्रणाली पुलिस अधिनियम, 1861 पर आधारित थी और आज भी ज्यादातर शहरों में पुलिस प्रणाली इसी अधिनियम पर आधारित है। इसकी शुरूआत अंग्रेजों ने की थी। तब पुलिस कमिश्नर प्रणाली भारत के कोलकाता (कलकत्ता), मुंबई (बॉम्बे) और चेन्नई (मद्रास) में हुआ करती थी। तब इन शहरों को प्रेसीडेंसी सिटी कहा जाता था। बाद में उन्हें महानगरों रूप में जाना जाने लगा।


 उधर, डीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि प्रदेश की 23 करोड़ जनता को तत्काल पुलिस की मदद पहुंचाने में ‘डायल 112’ सशक्त भूमिका निभा रही है। इस सेवा से जुड़े पुलिस के जवानों ने लगन और उत्साह के साथ जहां जनता की सुरक्षा की, वहीं यूपी-112 को संसाधनों से लैस किया गया है। इसका नतीजा है कि इस सेवा का रिस्पांस टाइम 13.33 मिनट से घटकर 11.54 मिनट तक पहुंच गया है। बीते तीन साल में ‘डायल 112’ ने जहां अपनी ‘विजिबिलिटी’ को बढ़ाया है, वहीं ‘रिस्पांस टाइम’ को घटाने में सफल रही है। ‘डायल-112’ का अगला कदम अपना ‘कवरेज’ बढ़ाने को लेकर है। आने वाले समय में कई तरह की सुविधाओं को इस सेवा से जोड़ा जाएगा।


डीजीपी ने बच्चा चोरी की शंका में भीड़ द्वारा एक मंदबुद्धि महिला के संबंध में ‘डायल 112’ को तत्काल सूचना देने वाले नोएडा के राघवेंद्र सिंह यादव और बच्चे के साथ ट्रेन से कटने पहुंची एक महिला की जान बचाने वाले कानपुर के दिनेश कुमार को ‘सिटीजन कॉलर ऑफ द ईयर’ से सम्मानित किया। उन्होंने विभिन्न जिलों में तैनात ‘डायल 112’ के आठ पुलिसकर्मियों को भी प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। इनमें निरीक्षक गिरीशचंद्र शर्मा (मुजफ्फरनगर), प्रमेश कुमार सिंह (मऊ) व कपिल गौतम (शामली), पीआरवी कमांडर राजेन्द्र सिंह, तेजपाल सिंह व रजनीश चौधरी (नोएडा), अरविंद प्रताप सिंह (मथुरा) व  सत्य प्रकाश शर्मा (बागपत) शामिल हैं।


डीजीपी ने कहा कि ‘डायल 112’ की बेहतरीन सेवा के लिए हाल ही दुबई में आयोजित कार्यक्रम में तीसरा पुरस्कार मिला है। इनोवेशन के लिए लीडरशिप अवॉर्ड के साथ ही इसने ई-गवर्नेंस अवॉर्ड में नौवां स्थान हासिल किया है। डीजीपी ने ‘डायल 112’ की वार्षिक रिपोर्ट पर आधारित पत्रिका ‘तेजस’ का भी विमोचन किया। ‘डायल 112’ के अपर पुलिस महानिदेशक असीम अरुण ने कहा कि इसे अन्य संबंधित संस्थाओं से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। एक्सप्रेस-वे, स्मार्ट सिटी और फील्ड में सीसीटीवी के जरिए प्रभावी व्यवस्था बनाने पर भी काम हो रहा है।