दिल्ली के चुनावी फ़िजा में बिहारिओं की दबदबा, पंजाबी नीचे लुढ़के

नई दिल्ली।  राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की राजनीति में कभी पंजाबियों का दबदबा था, लेकिन अब  वहां बिहारी वोटरों का दबदबा दिखने लगा है. दिल्ली विधानसभा की 25 सीटों पर बिहारी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. आम आदमी पार्टी के 11 विधायक बिहार के रहने वाले हैं. पहली बार 2015 में आम आदमी पार्टी ने इतनी संख्या में बिहार के लोगों को उम्मीदवार बनाया, जिसके चलते दिल्ली का राजनीतिक समीकरण बदल गया और पंजाबी लाबी परास्त हुई. पहली बार बनी पार्टी आप को सत्ता मिल गयी. दिल्ली में वोट की ताकत दिखाने में बिहारी वोटरों को पूर्वी यूपी के लोगों का भी साथ मिल रहा है. दरअसल, रोजी-रोटी कमाने गये बिहार के लोगों ने अब वहां की राजनीति में अपनी धमक पैदा कर दी है. 

 

90 के दशक के पहले वहां पंजाबी, वैश्य, मुस्लिम और दलित समीकरण हावी था. इन्हीं बिरादरी के नेताओं को सांसद और विधायक बनने का मौका मिलता था. मुख्य रूप से कांग्रेस और भाजपा दो ही पार्टियां थीं, जिनमें पंजाबी मूल के नेताओं  का ही बोलबाला था. लेकिन, जब केंद्र में समाजवादियों की सरकार बनी तो पूर्वी यूपी के लोगों के साथ ही बिहार के लोगों का भी वहां बसना आरंभ हो गया. पहले से अधिकारी स्तर पर बिहारियों की पैठ बन चुकी थी. अब लोटा और दरी लेकर पहुंचे बिहार के लोग भी अपनी ताकत दिखा रहे हैं.  

जानकार बताते हैं, दिल्ली विधानसभा की दो दर्जन से अधिक सीटों पर बिहार और यूपी के मतदाताओं की अच्छी तादाद है. बुराड़ी जैसी सीट पर तो बिहार के मतदाताओं की संख्या कुल वोटरों के 35 फीसदी तक आंकी गयी है. 

 

यही कारण है कि कोई भी दल बिहार के इन थोक वोटरों को दरकिनार कर नहीं चलना चाहता है. इस बार के चुनाव में बिहार मूल की दो बड़ी पार्टी जदयू और राजद पर दोनों राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ने दांव लगाया है. 

 

दिल्ली की राजनीति में सबसे अलग पंजाबी वोटर था, जिसका दिल्ली की राजनीति में खासा दबदबा था. इसकी वजह उनका दिल्ली में सबसे बड़ा और प्रभावी वर्ग होना था. आजादी के बाद से ही पंजाबियों की अच्छी तादाद दिल्ली में रही है.  

 

1947 के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आये पंजाबियों को  पूर्वी दिल्ली की गीता कॉलोनी से लेकर पश्चिमी दिल्ली का तिलक नगर, दक्षिण दिल्ली का लाजपत नगर, भोगल और राजेंद्र नगर जैसी दर्जनों कॉलोनियों में बसाया गया.