नोएडा। नोएडा प्राधिकरण द्वारा सेक्टर 151A में बनने जा रही गोल्फ कोर्स को लेकर आर्टिटेक्चर कंपनी द्वारा फाईनल रुप देने की तैयारी की जा रही है। इस गोल्फ कोर्स के लिए लगभग 700 करोड़ की अनुमानित लागत आने वाली है जिसका नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के द्वारा आवंटन किये जायेंगे। स्वयंसेवी संस्था (राईज) राइट इनिसिएटिव फाॅर सोशल एम्पावरमेंट, नोएडा ने इस पर एक सवाल खड़ा कर दिया है।
संस्था के संस्थापक सदस्य अनिल गर्ग ने समाचार- पत्र में छपे खबरों का हवाला देते हुए प्राधिकरण तथा सरकार को एक खुला पत्र भी लिखा है, जिसमें उन्होंने सवाल के साथ-साथ जानकारी भी मांगी है। यह पत्र नोएडा प्राधिकरण, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, भारत के प्रधानमंत्री , गृहमंत्रालय भारत सरकार , अध्यक्ष एनसीआर प्लानिंग बोर्ड नई दिल्ली , मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, मुख्यसचिव उ.प्र को भेजा है।
उन्होंने पत्र में उल्लेख किया है कि प्राधिकरण ने 2016-2017 , 6- 7 स्पोर्ट्स सिटी & Recreational Entertainment Park के
प्लॉट एलॉट किए गए थे और dab plots par आवासीय वाणिज्य के लिए 30 प्रतिशत, जबकि स्पोर्टस इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 70 प्रतिशत कंट्रक्शन स्वीकृत किया है।
पत्र में 700 करोड़ के खर्च से बनाए जाने वाले गोल्फ कोर्स के औचित तथा उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि जब नोएडा प्राधिकरण पहले से ही आर्थिक हालत की तंगी में है, तो इस पर 700 करोड़ खर्च करने का क्या औचित्य है ? जबकि जनता के पैसे से बनाए जाने वाले यह गोल्फ कोर्स किन लोगों के काम आने वाले हैं ? क्या आम आदमी इसका लाभ ले पाएँगे तथा कौन लोग इनके मेंबर होंगे ? नोएडा प्राधिकरण इस गोल्फ कोर्स से किस प्रकार राजस्व इक्टठा करेगी ?
श्री गर्ग ने पत्र में कहा है कि यह गोल्फकोर्स शहर के अमीर लोगों के लिए एक तोहफा स्वरुप होंगे। प्राधिकरण बिल्डर को जमीन देने से पहले ही इस बात के लिए करार कर लेती है कि बिल्डर सभी प्रकार के खेल कूद तथा मनोरंजन के व्यवस्था करेंगे। जब ऐसी व्यवस्था पहले से ही बन रही है तो अलग से इस गोल्फ कोर्स को बनाकर सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाना क्या ठीक होगा ? क्या निजी कंपनी इस तरह की सुविधा देने के लिए तैयार नहीं है या सरकार उसके दबाब में आकर काम कर रही है ?
उन्होंने यह भी सवाल खड़ा किया है कि प्राधिकरण उस पैसे से गरीबों के लिए एलआईजी फ्लैट नहीं बना सकती है , जिससे शहर के मध्यम तथा गरीब तबके के लोगों का भला हो सके ? आखिर सरकार इस ओर ध्यान क्यों नही देना चाहती है ? यहां श्रम तथा मजदूर लोगों की आवास की एक बड़ी समस्या है। लोग सड़क के किनारे जीवन जीने को मजबूर हैं। प्रधानमंत्री आवास के लिए आज बड़ी मात्रा में जमीन की जरूरत है जिससे जल्द से जल्द शहरी गरीबों के लिए आवास तैयार हो और मध्यम तथा गरीब तबके को सिर के ऊपर छत मिल सके।
उन्होंने यह भी बताया है कि नोएडा प्राधिकरण और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के द्वारा सभी स्पोर्टस सिटी को रियायती दर पर जमीन आवंटन किये गये हैं जिसका दर 6 हजार से लेकर 19 हजार प्रति वर्गमीटर के हिसाब से है। जबकि डेवलपर ने इस भू-खंडों को बेच दिया है और इससे मोटी कमाई की है या यों कहें कि मलाई उतार ली है। बिल्डरों ने इसे 45 हजार स्क्वॉयर मीटर के हिसाब से Land ko sold kar diya gaya Greater Noida West m and Noida में लगभग 65 हजार वर्गमीटर के हिसाब से जमीन बेचे जाने की खबर है।
उन्होंने सवाल किया है कि क्या उत्तर प्रदेश के अधिकारी और नौकरशाही स्वतंत्र फैसला लेने में सक्षम हैं?
( क) वे किस गैन्ट्री (तपका) / या जनता के लिए इस परियोजना की योजना बनाई गई है ? (ख) क्या इस परियोजना से समाज के सभी वर्ग लाभान्वित होंगे?
(ग) क्या नोएडा की अन्य निजी कंपनियों द्वारा 'गोल्फ कोर्स' सुविधाएं प्रदान नहीं की जाएंगी, जैसे स्पोर्ट्स सिटी सेक्टर -79, 150 और 151, नोएडा (उनके साथ थोक भूमि पहले से ही) है ?
क्या प्राधिकरण द्वारा मोनिटरिंग नहीं हो रही है क्योंकि सब डेवलपर्स को टेंडर और एलाटमेंट की समय और कन्डीशन के हिसाब से स्पोर्ट्स/गोल्फ एवं अन्य सुविधाएं बनाना है।
( घ) क्यों अधिकारी कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस और एलआईजी) के लिए थोक आवास के बारे में गंभीर नहीं हैं, जो कि आज की जरूरत है और हमारे तीन प्राधिकरणों को उ.प्र औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया है। इसलिए श्रम और आवास के लिए अधिक आवास गरीब लोग सबसे महत्वपूर्ण मामला है और हमारे प्राधिकरण ने 2007 के बाद से निर्दोष कमजोर वर्ग / श्रम समुदाय के अधिकारों से वंचित कर दिया है। आवंटित बिल्डरों को भूमि आवंटन और बिल्डर्स को अतिरिक्त / खरीद योग्य एफएआर दिया गया, लेकिन यह एफएआर कमजोर धारा के आवास और सरकार के उल्लंघन के लिए था। भारत और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड के प्रावधान और सिफारिशें लागू नहीं हुई।
पत्र द्वारा कहा गया है कि संस्था के द्वारा बड़ी घोटाला होने का अंदेशा जाहिर किया गया है और इसके लिए एसआईटी की मांग की गई है। उन्होंने चिंता जाहिर की है कि क्या हमारे अधिकारी इतने अक्षम हैं ? क्या अधिकारी नेता और बिल्डर के दबाव में काम करने को मजबूर है? जिला गौतम बुद्धनगर में इस घोटाले की जाँच होनी चाहिए। शायद यह अब तक का हिन्दुस्तान का सबसे बड़ी घोटाला हो। पत्र में आशा व्यक्त किया गया है कि प्रदेश के योगी सरकार इसका संज्ञान लेकर जल्द से जल्द कारवाई करने की निर्देश देंगे, जिससे आम नागरिकों को लाभ मिल सके।