पिपट एवं पनागर में आंधी, ओलों से पान खेती का भयंकर नुकसान, किसानों में हाहाकार

नई दिल्ली।  2 जनवरी रात करीब 10 बजे ग्राम -पिपट एवं पनागर में बारिश,आंधी तथा भारी ओला वृष्टि से पान की खेती को भारी नुकसान एवं तबाही हुई है। दोनों गाँव के पान की खेती करने वाले प्रत्येक किसान की लगभग 95 से 98 प्रतिशत फसल बर्बाद हो गयी है। यहां पान किसानों में हाहाकार मचा हुआ है। 



दोनों चौरासिया बाहुल्य पान किसानों की एक मात्र फसल बर्बाद होने से दोनों गाँव के अधिकांश पान किसान आर्थिक रूप से बर्बाद हो गए हैं। पान की फसल बर्बाद होने के कारण कई किसान भाई अपने बेटा -बेटी की शादी के लिए आर्थिक रूप से परेशान हो गए हैं, जबकि  कई किसान  अपना पेट पालने के लिए बड़े शहरों एवं महानगरों की और पलायन करने के लिये मजबूर हो गए हैं।  छोटे से छोटे  पान किसान  का भी लगभग 2 से 3 लाख रूपये  का आर्थिक नुकसान हुआ है, जबकि कई बड़े किसानों का तो लगभग 10 से 20 लाख रूपये का आर्थिक नुकसान हुआ है । कई किसान नई फसल लगाने के लिए भी आर्थिक रूप से मोहताज हो गए हैं। 
कैंसर जैसी भयंकर बीमारी की रोकथाम करने वाले पान को पैदा करने वाले किसानों को वर्तमान समय में इस क्षेत्र में राज्य या केंद्र सरकार द्वारा कोई आर्थिक सहायता नहीं दी जाती है और न ही पान किसानों को आर्थिक मदद करने के लिए सरकार द्वारा कोई योजना संचालित की जाती है ।
इस क्षेत्र के पान किसानों  की आर्थिक स्थिति काफी नाजुक है ।इस स्थिति में देखना यह है कि शासन -प्रसाशन प्राकृतिक आपदा से बर्बाद हुए पान किसानों (चौरासियों ) की किस प्रकार और कितनी मदद करता है। साथ ही यह भी देखना है कि राजनैतिक पार्टियों के अंधभक्त बने हुए  चौरासिया समाज के अग्रणी नेता और राजनेता  पान किसानों और आर्थिक रूप से बर्बाद हुए अपने गरीब चौरासिया भाइयों  को सरकार से कितनी मदद दिलवा पाते हैं।


हर साल किसी न किसी क्षेत्र में दैविक आपदा का ग्रास चौरसिया पान उत्पादकों को बनना पड़ता है। चाहे ओलबारी से, चाहे भीषण ठंढ़ से, चाहे भीषण आग से, चाहे भीषण गर्मी से, चाहे आंधी तूफान से। पर, चौरसिया समाज के नेता जो सत्ता सुख में अंधे हो गए हैं, या जो चौरसिया समाज के नेतृत्व करनेवाले संगठनों पर कब्जा कर गुटका उद्योग में लिप्त हैं, उनसे मदद करने या आवाज़ बुलंद करने की नाउम्मीदी ही है, क्योंकि ये बिजनेश मैन हैं और चौरसिया समाज के नाम पर इनका बिजनेश भी खूब फलफूल रहा है।वैसे, चौरसिया समाज से इन्हें लेना देना नहीं है, पर इनका उपकार है कि वे चौरसिया मंचों पर शोभायमान होने पहुंच जाते हैं।


अब चौरसिया समाज को जागना ही होगा। राष्ट्रीय स्तर पर एक आपदा कोष बनना ही होगा, अन्यथा बातों में उलझकर कुछ नहीं होगा।