** रहस्यमय और विचित्र हैं शिव स्वरूप 'शंकर जी'
जिस प्रकार इस ब्रह्मांड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई शुरुआत, उसी प्रकार शिव स्वरुप अनादि और अनंत हैं। सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है। जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे। जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे।
शिव को महाकाल अर्थात समय कहा जाता है। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है।
परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है, क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।
पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास में सतयुग से कलयुग तक, एक ही मानव शरीर ऐसा है जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है।
वेदो शिवम शिवो वेदम।
परमात्मा शिव के इसी स्वरूप द्वारा मानव शरीर को रुद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त होता है।