नोएडा में कोरोना वाइरस से लड़ने के लिए आपदा प्रबंधन सेल नोएडा की उपेक्षा क्यों ?

नोएडा। यह बात जानकर आपको अवश्य सुखद होगा कि नोएडा में आपदा प्रबंधन सेल गठित है।  पर महज इसे शो- पीस बना दिया गया है।  आज कोरोना वाइरस के विश्वव्यापी महामारी पर आपदा घोषित किया जा रहा है, वहीं नोएडा के आपदा प्रबंधन सेल को हाशिये पर रख दिया गया है। जबकि नोएडा में कोरोना पीड़ित चार मामले पॉजिटिव पाये गए हैं। पता नहीं, जिला प्रशासन और नोएडा प्राधिकरण आपदा प्रबंधन सेल का सहयोग क्यों नहीं ले रहा है। जबकि आज नोएडा में आपदा प्रबंधन सेल की सहयोग की सबसे बड़ी आवश्यकता महसूस की जा रही है। नोएडा के भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों, बाजारों में आज इसकी ज्यादा जरूरत महसूस की जा रही है। पर, यहां प्रशासनिक अमला स्वयं का श्रेय  लेने की कोशिश में जुटी है। जब कठिनाइयां ज्यादा बढ़ जाएगी, तभी क्या आपदा प्रबंधन सेल नोएडा का सहारा लिया जाएगा ? यह नोएडा के लिए यक्ष प्रश्न बन गया है।



उल्लेखनीय है कि नोएडा में तत्कालीन जिलाधिकारी एनपी सिंह के कार्यकाल के दौरान व उनके प्रयासों से वर्ष 2015 में नोएडा के सेक्टर 29 गंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में डिजास्टर मैनेजमेंट सेल  अर्थात आपदा प्रबंधन सेल का गठन तो कर दिया गया था, लेकिन उसका इस्तेमाल शहर में न के बराबर किया गया है। 
 इसका हेड आपदा विशेषज्ञ डॉ राका को बनाया गया था।जिन्होंने प्राधिकरण के सहयोग से आपदा नियंत्रण के लिए तीन लेयर बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी। पहली लेयर में प्रत्येक क्षेत्र में युवाओं को छांटकर उन्हें डिजास्टर वालंटियर की ट्रेनिंग दी गई। साथ ही फर्स्ट एड किट और ड्रेस भी दी गई। इन वालंटियर को जिम्मा दिया गया था कि वे अपने क्षेत्र में किसी तरह की हादसा होते ही सबसे पहले मौके पर पहुंचेगें और घायलों को प्राथमिक चिकित्सा देने के साथ ही सेल से समन्वय बनाने का काम करेंगें।


दूसरी लेयर के रूप में थाने और चौकियों की पुलिस को रखा गया था। उनके लिए भी ट्रेनिंग प्रोग्राम करवाए गए और आपदाओं के वक्त बचाव कार्य शुरू करने का प्रशिक्षण भी दिया गया था। 


तीसरे और अंतिम लेयर के रूप में एनडीआरएफ को रखा गया। जो हैवी मशीनरी और लाइफ सेविंग उपकरणों के साथ मौके पर पहुंचकर हताहतों को बचाने का अभियान शुरू करेंगे। इससे पहले कि उनकी योजना आगे बढ़ पाती डॉ. राका अक्टूबर 2017 में एक साल की डिजास्टर मैनेजमेंट ट्रेनिंग पर इजराइल चले गए। उनके जाने के बाद 6 महीने तक सेल हेड का पद खाली पड़ा रहा और अप्रैल में शिखा शर्मा ने नए मुखिया के तौर पर जॉइन किया।


इस दौरान न तो जिला प्रशासन ने सेल को एक्टिव करने में खास गंभीरता दिखाई और न ही अथॉरिटी अफसर सक्रिय दिखाई दिए। दोनों की लापरवाही का नतीजा यह रहा कि वालंटियर्स को बांटी जाने वाली लाखों रुपये की दवाइयों और फर्स्ट एड किट सेल के गोदाम में पड़ी- पड़ी बेकार हो गई। यह हालत तब है, जब नोएडा- ग्रेनो सीस्मिक जोन- 4 में शामिल हैं और यहां पर भीषण भूकंप आने का खतरा भी बहुत ज्यादा है।  बहरहाल आज भूकंप जैसी स्थिति तो नहीं है, लेकिन कोरोना की भयावहता भी भूकंप से कम खतरनाक नहीं है।


बता दें कि आपदा प्रबंधन का पहला चरण है खतरों की पहचान। इस अवस्था पर प्रकृति की जानकारी तथा किसी विशिष्ट अवस्थल की विशेषताओं से संबंधित खतरे की सीमा को जानना शामिल है। साथ ही इसमें जोखिम के आंकलन से प्राप्त विशिष्ट भौतिक खतरों की प्रकृति की सूचना भी समाविष्ट है।


इसके अतिरिक्त बढ़ती आबादी के प्रभाव क्षेत्र एवं ऐसे खतरों से जुड़े माहौल से संबंधित सूचना और डाटा भी आपदा प्रबंधन का अंग है। इसमें ऐसे निर्णय लिए जा सकते हैं कि निरंतर चलनेवाली परियोजनाएं कैसे तैयार की जानी हैं और कहां पर धन का निवेश किया जाना उचित होगा, जिससे दुर्दम्य आपदाओं का सामना किया जा सके।


इस प्रकार जोखिम प्रबंधन तथा आपदा के लिए नियुक्त व्यावसायिक मिलकर जोखिम भरे क्षेत्रों के अनुमान से संबंधित कार्य करते हैं। ये व्यवसायी आपदा के पूर्वानुमान के आंकलन का प्रयास करते हैं और आवश्यक एहतियात बरतते हैं|


जनशक्ति, वित्त और अन्य आधारभूत समर्थन आपदा प्रबंधन की उप-शाखा का ही हिस्सा हैं। आपदा के बाद की स्थिति आपदा प्रबंधन का महत्वपूर्ण आधार है। जब आपदा के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है तब लोगों को स्वयं ही उजड़े जीवन को पुन: बसाना होता है तथा अपने दिन-प्रतिदिन के कार्य पुन: शुरू करने पड़ते हैं।