लॉकडाउन में सिसकती सांसे, दम तोड़ती जानें

रिपोर्ट : राजनारायण सिंह चौहान



मैनपुरी। "जब संविधान सभा ने यह संकल्प लिया था कि हम भारत के लोग भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्ता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बनाएंगे,जिसमे सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,विचार अभिव्यक्ति,विश्वास धर्म उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता व्यक्ति की गरिमा जैसे बहुत से चुनिन्दा शब्द रखे गये थे... क्या आज ऐसा हमारा भारत देश बना..?
आखिर इसका जिम्मेदार कौन है..?
नंगे पावों हजारों किलोमीटर पैदल, साइकिल, रिक्शा, ठेले, मोटरसाइकिलों से,टैम्पों से चलना और फिर पुलिस व दबंगो की लाठियां खाना,पता नही कोरोना वायरस से फैली महामारी के लॉकडाउन में न जाने क्या क्या नही झेला भारत के बेवस गरीब-मजदूर ने।
इस दौर में देश व राज्यो की पूँजीवादी सरकारों के इस दौर में बहुत कुछ नया देखने को भी मिला है।
मुंबई वालों को खाना डिलीवर करने वाला अब उसे खुद खाने के ​लाले पड़ गए हैं। वह ऐसी अकुलाहट में पैदल भाग रहा है! मुंबई से चला है गोंडा (उ.प्र.)पहुंचना है करीब 1500 किलोमीटर इसी गोंडा के कुछ अन्य युवक जो कि 25 दिन लगातार साइकिल चलाकर अपने घर पहुंच चुके हैं मानो कि वह मौत के मुंह से निकल कर आयें है। ऐसे न जाने कितने देश के करोड़ों लोग मौत के मुंह में अभी भी फसे हुए हैं!
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने सबसे गरीब,सबसे निराश,सबसे असहाय और जरूरतमंद लोगों को अकेला उनके हाल पर छोड़ दिया है!
जिस भारतीय सेना को फूल बरसाने के लिए कहा गया था, अगर वही सेना बड़े गर्व के साथ सड़क पर बच्चे जन रहीं महिलाओं को उनके घर तक पहुंचाती थी तो ऐसा देख डॉक्टर भी खुश होते और मजदूर भी खुश होते, वह मां भी खुश होती और उसका बच्चा भी खुशनसीब होता और हम आपको भी खुशी होती.लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ! इसी तरह से  कांवरियों पर फूल बरसाने वाला व साधुओं के पैर दबाने वाला दारोगा भी नंगे पैरों में पड़े छालों में मरहम लगाता तो उसे दुआएं मिलती वह भी न जाने आज कहां किस विल में छुप गया है.
उ.प्र.में वह DM व SSP जो हुजूम के साथ ताली और थाली बजवा रहा था अगर वह आज उस हुजूम के साथ जो लोग बुजर्ग महिलाओं पर 80-90 साल की उम्र में उठक बैठक लगवा रहे हैं, उन्हें रोकता तो बुजर्ग महिलाएं दुआएं देती लेकिन पता नही वह सब अब कहा है! शायद दुनियां के किसी भी देश में कभी ऐसा हुआ हो,जो आज भारत देश मे हो रहा है जहाँ 9 माह, 8 माह की गर्भवती महिलाएं सैकड़ों किलोमीटर पैदल चली होंं और फिर बच्चे को जन्म दिया हो.वह तो धन्य है,जिसने इस हाल में भी उस मां और बच्चे को जिंदा रहने की शक्ति अदा की है!कोई साइकिल से है.तो कोई पैदल है,कोई आटो से,तो कोई मोटरसाइकिल से,ट्रक,कंटेनर,ट्रैक्टर या जो मिल गया,उसी से ही अपने गाँव को चल दिया!उन्होंने एक पल भी यह नही सोचा कि आखिर हजारों किलोमीटर का यह कठिन सफर कैसे पूरा होगा या नही होगा!


यह संख्या कितनी है,इस बारे में भी  कोई कुछ नहीं जानता,उन्होंने अपनी सारी कमाई भी लुटा दी है,ट्रक में भर कर लाने वाला मालिक भी हर मजदूर से 4000 तक भाड़ा वसूल रहा है! किसे कितनी तकलीफ है,यह भी कोई नहीं जानता,वे पहुंचेंगे या नहीं पहुंचेंगे, यह भी कोई नहीं जानता,उन्हें जितनी तकलीफ है,वह शायद मैं महसूस कर तो सकता हूं लेकिन लिख नहीं सकता हूँ। 


कई राज्यों के रिपोर्टर जैसा बता रहे हैं,उसके हिसाब से हालात बहुत खराब हो चुके हैं,और आने वाले समय में और ज्यादा खराब होने की सम्भावना है मुंंबई, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा,दिल्ली से झारखण्ड, छतीसगढ़,बिहार सेआने वाले लोग कब तक पहुंचेंगे,यह पता नहीं है,पर वे चल पड़े हैं!वे जिस माटी से बने हैं,उस माटी को सलाम कीजिए और इस देश की सरकारों को अपनी कूवत भर लानत भेजिए।