कबीर, चैतन्य और मीरा के शरीर हो गए अंतर्लीन

 



 


तीन ऐसे भक्त जिनके शरीर का थाह नहीं मिला


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कबीरदास (1398-1518)— 1518 में कबीर ने काशी के पास मगहर में देह त्याग दी। मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है।


चैतन्य महाप्रभु (1486-1534)— 15 जून, 1534 को रथयात्रा के दिन जगन्नाथपुरी में संकीर्तन करते हुए वह जगन्नाथ जी में लीन हो गए और शरीर का कुछ भी पता नहीं चल सका I


मीराबाई (1498-1547)— मीराबाई बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहीं और जीवन के अंतिम दिनों में द्वारका चली गईं। जहाँ 1547 ई. में वह नाचते-नाचते श्री रणछोड़राय जी के मन्दिर के गर्भग्रह में प्रवेश कर गईं और मन्दिर के कपाट बन्द हो गये। जब द्वार खोले गये तो देखा कि मीरा वहाँ नहीं थी। उनका चीर मूर्ति के चारों ओर लिपट गया था और मूर्ति अत्यन्त प्रकाशित हो रही थी। मीरा मूर्ति में ही समा गयी थीं। मीराबाई का शरीर भी कहीं नहीं मिला।....
हूँ तेरा खिदमतगार मैं, कोई मेरे लायक खिदमत दे दे।
मेरे कान्हा तू मुझको भी इन जैसी किस्मत दे दे।।