रामविलास पासवान ने चुनाव लड़ने से किया तोबा
 पटना। देश में  दलित राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक रामविलास पासवान  इस बार  लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. यह पहला अवसर है जब राजनीति के अर्द्धशतक यानि 50 साल पूरा कर चुके रामविलास पासवान चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.  ऐसा नहीं है कि वे राजनीति से दूर रहेंगे, लेकिन हाजीपुर सुरक्षित क्षेत्र की जनता उनका चयन नहीं करेगी. उनके जगह पर उनका भाई लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष व बिहार सरकार के मंत्री पशुपति कुमार पारस उम्मीदवार होंगे.

 

खगड़िया जिले के अलौली विधान सभा क्षेत्र से 1969 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीतने  की शुरूआत हुई थी. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के बाद आपातकाल का विरोध करने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

 

पहली बार 1977 में छठी लोकसभा में हाजीपुर सुरक्षित क्षेत्र से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते. 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में वे  दूसरी बार विजयी रहे. 1985  में नवीं लोकसभा में तीसरी बार लोकसभा में चुने गये.  1996 में दसवीं लोकसभा में वे चुनाव जीते. 1998 में जनता दल व 1999 में जदयू से चुनाव जीतते हुए 2000 में जदयू से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की. 

 

2004 में चुनाव जीतने के बाद 2009 में चुनाव हार गये. अगस्त 2010 में बिहार से राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. उनके बारे में कहा जाता रहा है कि केंद्र में किसी भी दल की सरकार हो रामविलास पासवान मंत्री जरूर होंगे. यही कारण है कि रामविलास पासवान बाजपेयी की सरकार में भी मंत्री थे तो यूपीए वन की सरकार में भी.