चौरसिया समाज के लिए नागपंचमी सबसे बड़ा महापर्व

5 अगस्त 2019 नागपंचमी पर विशेष


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चौरसिया समाज का सबसे बड़ा पर्व है नागपंचमी महापर्व
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श्रावण मास की शुक्ल पंचमी के दिन नागपंचमी का महापर्व परंपरागत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है. यह पर्व चौरसिया समाज के लिए सबसे बड़ा पर्व है, क्योंकि इस पर्व के साथ उनकी जीवनचर्या तय होती है, जो पान की खेती कर रहे हैं. इ‍स दिन नाग को देवता के रूप में पूजा जाता है. नाग को हल्दी, कंकू, दूध, लावा एवं खीर चढ़ाई जाती है. इ‍स दिन नागों के दर्शन भी शुभ माने जाते हैं. धार्मिक ग्रंथो में देवाधिदेव महादेव गले का अलंकरण बनाते हैं तो भगवान विष्णु के शैय्या.
इस दिन देवताओं के प्रथम देव गणेश ने नाग को यज्ञोपवीत के रूप में धारण करते हैं. इस दिन शिव मंदिरों, घरो में विशेष साफ़ सफाई और सज्जा की जाती है. घरो में व्यंजन पकवान बनाये जाते है.
 कृषि व पर्यावरण के लिए उपयोगी हैं नाग देवता. नागपंचमी पर खेती के औजारों का पूजन करने का भी प्रचलन है।
इस दिन चौरसिया समाज के पान उत्पादक बरेज में जाकर नागबेल की पूजा, आराधना करते हैं और बम्पर पान की खेती होने की मांग करते हैं।
नागपंचमी के दिन कुंआरी लड़कियां तालाबों के किनारे गुड़िया व चने लेकर जाती हैं. इनके पीछे -पीछे बेर का डंडा लेकर लड़के जाते हैं. लडकियां गुड़िए को पानी से भरे तालाब में फेंकती हैं और लड़के इसे बेर के डंडे से पीटते हैं. गुड़िया पीटने वाले लड़कों में चना बांटा जाता है. इस तरह लड़कियां चना बांट लड़कों को मजबूत व बलिष्ठ बनने के लिए प्रेरित करती हैं. परंपरा में शामिल यह क्रिया वर्षो से होती चली आ रही है.आज भी कहीं - कहीं लोग इस परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं.
 गांवों में नागपंचमी के दिन कुछ खेल प्रतियोगितएं भी आयोजित होती हैं. लोग नाग देवता की पूजा के लिए बने लजीज व्यंजनों का आनंद लेते हैं.
 भारतीय संस्कृति में नाग का विशेष महत्व बताया जाता है. कालसर्प योग की पूजा के लिए भी नाग पंचमी का दिन शुभ मानते है. नागपंचमी पर चौरसिया समाज के लोग शोभायात्रा निकालते हैं. यात्रा में नाग देवता और नागबेल माता की प्रतिमाओं की झांकी निकालते हैं.
भारतीय संस्कृति में नागों को देवता के समान माना गया है. पूर्ण श्रद्धा से इनका पूजन आदि किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि हमारी धरती शेषनाग के फन पर टिकी हुई है. ये धार्मिक रूप से ठीक है. नागपंचमी पर सर्प की जगह, शिव की, नाग देव की तस्वीर की, मोम या प्लास्टिक के बने नाग देव की पूजा भी हो सकती है. वैज्ञानिक और जीवनचक्र के रूप में देखा जाए तो सांप धरती पर जैविक क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सांप प्रकृ‍ति का अनुपम उपहार हैं. साँप प्राकृतिक जीव है. अन्न के दुश्मन व पानों के दुश्मन चूहों की 80 प्रतिशत आबादी को सांप नियंत्रित करते हैं. सांप भी बड़े प्रभावी ढंग से चूहों की आबादी को रोकते हैं. विषधर होने के बाद भी नाग देवता को दूध पिलाते हैं. कीड़े मकोड़े खाने वाले प्राणी को सपेरे बलपूर्बक दूध, खीर खिलाते हैं, जो ठीक नहीं है। इसका प्रतिकार होना चाहिए।
 धार्मिक मान्यताओं के कारण सांपों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. देश में प्रतिवर्ष नागपंचमी पर लाखो सांप दूध पिलाने व पूजन में युक्त सा‍मग्रियों के संक्रमण से मारे जाते हैं. सपेरों द्वारा सांपों के विषदंतों व विषग्रंथियों को अमानवीय व क्रूर तरीके से निकालने से सांपों के मुंह में घाव व सेप्टिक हो जाता है. मुंह का आंतरिक हिस्सा क्षतिग्रस्त रहता है. इससे सावधान रहने की जरूरत है।
पान अमृत वेल है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति देवासुर संग्राम के पूर्व समुद्र में देवताओं और दानवों के बीच अमृत मंथन के पश्चात हुआ है। अमृत निकलने के पश्चात देवताओं और राक्षसों में पहले अमृत पीने को लेकर झगड़ा हुआ। अमृत के लिए छीना- झपटी हुई। इसी बीच थोड़ा अमृत लार रूप से वासुकि नाग के फन पर गिरा, जो नागवेल कहलाया। यही वास्तविक नागवेल पान है, जो पाताल लोक के नागलोक ले जाया गया। पान वहीं से पान धरती पर आया। धरती पर पान लाने वाले चौरसिया कुल वंशज चौऋषि महाराज के पोते चौरासी मुनि थे। उन्होंने नागराज की कन्या जिसके अंगुली के पोर पर पान की बेल थी, उसे विवाह कर धरती पर पान का बेल तैयार किया था, जिससे भगवान विष्णु के विश्वजीत यज्ञ और महाभारत कालीन यज्ञ में पूजन का पहला भाग पान के रूप में बना। पहले पान, फिर फूल, फिर मेवा आदि प्रसाद का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। यह पान सनातन काल से चौरसिया के वंशजों द्वारा आज भी उत्पादन किया जा रहा है। वस्तुतः नागपंचमी और पान की पूजा अनवरत है। नागपंचमी को चौरसिया समुदाय चौरसिया दिवस के रूप में भी मनाते हैं, क्योंकि नागपंचमी तिथि को ही चौरासी मुनि नाग लोके से नागकन्या को विवाह कर धरती पर पान लेकर आये थे। अभी भी बहुत से चौरसिया अपने नाम में नागवंशी जोड़ते हैं।


 बिहार के औरंगाबाद जिले में 12 गांवा में रहनेवाले चौरसिया समाज के लोग नागराज सोखा - शम्भू के नाम से बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं। तब पुजारी के शरीर पर शोखा आते हैं, और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।


                          सुरेश चौरसिया, पत्रकार


                              9810791027.