10 वर्षों में 844 शेरों को खो चुका देश

 


नॉएडा । पिछले दस वर्षों में हम 844 शेरों को खो चुके हैं , यह जानकारी आर टी आई के माध्यम से समाजसेवी श्री रंजन तोमर को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने दी है। श्री तोमर ने यह जानकारी पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मांगी थी।



गौरतलब है कि यह जानकारी कई शीर्षकों में बंटी हुई थी, जैसे प्राकृतिक मौत , शेरों में अंदरूनी लड़ाई के दौरान मृत्यु , मानव भक्षक बाघ को मार देने के निर्देश अनुसार , शिकार , एक्सीडेंट एवं शेरों के अंग पाए जाना।



2009 के डाटा के अनुसार सबसे ज़्यादा मृत्यु मध्य प्रदेश में हुई जहाँ 15 शेर मारे गए , दूसरे नंबर पर कर्णाटक रहा जहाँ 11 शेरों को अपनी जान गंवानी पड़ी। एक शेर को आदमखोर होने के कारण उत्तर प्रदेश द्वारा मार देने के आदेश हुए। कुल 66 शेर उस वर्ष देश से कम हुए।



2010 में 53 शेरो की मृत्यु हुई जिसमें आसाम और महाराष्ट्र में 8 -8 सबसे ज़्यादा शेर मरे। 2011 में यह संख्या 56 रही जबकि एक शेर को आदमखोर होने के कारण मार दिया गया।


2012 में शेरों की मरने की संख्या 88 हो गई जो की एक बहुत बड़ी बढ़ोतरी थी , 2013 में ही 68 शेरों को अपनी जान गंवानी पड़ी ,2014 में भी यह संख्या 79 रही। 2015 में एक बार फिर 82 शेर मरे।


2016 में शेरों के मरने की संख्या 120 हो गई, जो बेहद दुखद बात है और पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का विषय है। 2017 में 116 एवं 2018 में 102 शेर मारे गए , 2019 में अभी तक 12 शेर अपनी जान गँवा चुके हैं।




दुखद विषय यह है के शेरो के लिए चलाये जा रहे इतने सारे अभियानों के बावजूद हम उन्हें खोते जा रहे हैं , यह आंकड़े गवाह हैं के देश के सबसे राजसी प्राणी के लिए हम बहुत कुछ नहीं कर पा रहे हैं , इससे पहले भी श्री तोमर ने पिछले दस वर्षों में शेरो के शिकार की जानकारी मांगी थी जिससे पता चला था के तकरीबन 384 शेरों को शिकारियों द्वारा मार दिया गया है। अब इस जानकारी से पता चलता है के कितनी बड़ी संख्या में हम शेरों को खोते जा रहे हैं , बड़ी बात यह भी है के इन केसों में कई ऐसे भी केस हैं जहाँ अभी जांच चल रही है के यह शिकारी द्वारा मारे गए शेर हैं अथवा अलग कारणों से , कई बार कम नंबर दिखाने के लिए शिकार हुए शेरो को भी प्राकृतिक अथवा आपसी लड़ाई में मारे गए दिखा दिया जाता है , यह बेहद संवेदनशील मामला है एवं सरकार को इस बाबत कड़े कदम उठाने पड़ेंगे अन्यथा परिणाम भयावह होंगे। क्यूंकि यह प्राणी खाद्य श्रंखला के एक बेहद भाग हैं और इनके बिना यह पूरी श्रंखला चरमरा जायेगी।


 


 


 


 


 



Regards
Advocate Ranjan Tomar
Delhi High Court