त्रेतायुगीन सूर्यनगरी देव में चैती छठ महापर्व आज

म्हारो देव में आज पहला अर्ग बाटे, रउवा आयब जरूर
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100 फिट ऊंचा देव सूर्यमंदिर है सभी कलाओं का केंद्र
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आज देव में आज छठ पर्व भी और राष्ट्रीय पर्व मतदान भी
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बिहार राज्य के औरंगाबाद से 18 किलो मीटर दूर देव स्थित सूर्य मंदिर करीब सौ फीट ऊंचा है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था।



देव सूर्य मंदिर देश की धरोहर एवं अनूठी विरासत है। हर साल छठ पर्व पर यहां लाखों श्रद्धालु छठ करने झारखंड, उत्तरप्रदेश समेत कई राज्यों से आते हैं। कहा जाता है तो जो भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
यहां भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण अपने पुत्र शाम्ब के साथ आ चुके हैं। पांचों पांडव अज्ञात काल में देव में छठ पर्व और सूर्योपासना किया था। च्यवन ऋषि यहीं सूर्योपासना कर बूढ़े से जवान बने थे। मयूर भट्ट यहीं सूर्यशतक की रचना कर कोढ़ रोग से मुक्त हुए थे। जगद्गुरु शंकराचार्य का भी वैदिक धर्म की स्थापना और परिभ्रमण के क्रम में यहां आगमन हुआ था। आदि काल से न जाने कितने ऋषि, महर्षियों, अन्वेषण कारियों इतिहासकारों, शिल्पकारों, खोजियों का आगमन हो चुका है। साल में दो बार लाखों लोग यहां छठ पूजा करने आते हैं। जो लोग यहां आते हैं, भगवान सूर्यदेव के कृपा पात्र बन जाते हैं।



अयोध्या के राजा ऐल ने बनवाया था मंदिर
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कहा जाता है कि सतयुग में अयोध्या के निर्वासित राजा ऐल एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने गए थे। वे किसी ऋषि के श्राप वश श्वेत कुष्ठ से पीड़ित थे। वे देव के वन में राह भटक गए। राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया जिसके किनारे वह पानी पीने गए और अंजुरी में जल भर कर पीया जिससे उनका श्वेत कुष्ठ ठीक हो गया। उन्होंने बताया कि वही सरोवर आज सूर्यकुंड के रूप में जाना जाता है। उसी रात जब राजा रात में सोए हुए थे तो उन्हें सपना आया कि जिस गड्ढे में उनका कुष्ठ ठीक हुआ था, उसमें ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की तीन मूर्ति हैं। इसके बाद राजा ने मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करके स्थापना की आैर मंदिर बनवाया।


तीन स्वरूपों में मौजूद भगवान भास्कर
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देव सूर्य मंदिर में छठ करने का अलग महत्व है। यहां भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विराजमान है। देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (प्रात:) सूर्य, मध्याचल (दोपहर) सूर्य, और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में विद्यमान है। पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्रतिमा काफी प्राचीन है। मंदिर का सर्वाधिक आकर्षक भाग गर्भगृह के ऊपर बना गुंबद है जिसपर चढ़ पाना असंभव है। गर्भगृह के मुख्य द्वार पर बायीं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा है और दायीं ओर भगवान शंकर की गोद में बैठी प्रतिमा है। ऐसी प्रतिमा सूर्य के अन्य मंदिरों में देखने को नहीं मिलती। गर्भ गृह में रथ पर बैठे भगवान सूर्य की भी एक अदभुत प्रतिमा है। मंदिर में दर्शन को ले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।


छठ मेले में जुटी श्रद्धालुओं की अपार भीड़
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छठ के अवसर पर देव सूर्य मंदिर परिसर में विशाल मेला लगता है। इस बार बिहार के विभिन्न भागों एवं झारखंड तथा उत्तर प्रदेश से करीब सवा पांच लाख श्रद्धालु यहां छठ पूजा करने पहुंचे हैं। यहां पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन के प्रयास से प्रत्येक वर्ष सूर्य अचला सप्तमी को महोत्सव का भी आयोजन होता है। देव सूर्य मंदिर अपनी शिल्पकला एवं मनोरमा छटा के लिए प्रख्यात है। कार्तिक एवं चैत में छठ करने कई राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यहां के सूर्यकुंड तालाब का विशेष महत्व है। छठ मेले के समय देव का कस्बा लघु कुंभ बन जाता है। छठ गीत से देव गुंजायमान हो उठता है।


आैरंगजेब ने की थी मंदिर तोड़ने की नाकाम कोशिश
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मुगल शासक औरंगजेब ने भारत में अनेक मूर्तियों एवं मंदिरों को ध्वस्त किया था। इसी क्रम में वह देव के सूर्य मंदिर को तोडऩे की भी मंशा रखता था। उसने जैसे ही अपने सैनिक वहां भेजे, लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। लोगों ने ऐसा करने से मना किया परंतु वह इससे सहमत नहीं हुआ। एक किंवदंती के अनुसार औरंगजेब ने कहा कि अगर तुम्हारे देवता में इतनी ही ताकत है तो मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम कर दें। ऐसा ही हुआ और रातोंरात मंदिर का मुख्यद्वार पश्चिम की ओर हो गया। कहते हैं कि दूसरे दिन सुबह जब लोगों ने देखा तो मंदिर का प्रवेश द्वार पूरब से पश्चिम हो गया था। इसके बाद औरंगाबाद ने मंदिर तोडऩे का इरादा बदल दिया।