अपने अनपढ़ पिता के भागीरथ सोच को आईएएस बनकर साकार किया है संजय चौरसिया ने

किसी भी बड़ी सफलता के लिए उतना ही जद्दोजहद प्रयास करना पड़ता है। हौसला बुलंद हों और इरादे नेक हों तो जिंदगी के हर इम्तिहान में कामयाबी मिलनी तय है। इसे सच कर दिखाया है संघ लोक सेवा आयोग की भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में 387वां रैक पाकर चयनित बलिया जनपद के बिल्थरारोड तहसील के चौकिया मोड़ निवासी संजय चौरसिया ने। आईएएस संजय चौरसिया ने चौरसिया समाज के मेधावी छात्रों को यह संदेश देने की कोशिश किया है कि आप हौसलों की उड़ान पर आगे बढ़ते रहिए, आपके लिए मंजिल दूर नहीं है।



यूपीएससी के 5 अप्रैल 2019 को घोषित परिणाम में श्री चौरसिया का यह चौथा प्रयास था। पिछले तीन मौकों पर वह इंटरव्यू तक पहुंचे थे। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी। उनके चयन से क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गयी है।
बिल्थरारोड तहसील क्षेत्र के उभांव थाना अंतर्गत चौकिया मोड़ निवासी केदारनाथ चौरसिया के सबसे छोटे पुत्र संजय ने गांव की गलियों से नीली बत्ती तक का सफर यूं ही नहीं तय किया। एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले संजय को उसके अनपढ़ पिता ने स्वयं मुफलिसी की जिंदगी जीने के बावजूद उसे भगीरथ प्रयास की प्रेरणा दी जिसे अपने जीवन का उद्देश्य बना चुके थे संजय।


पढ़ाई में वह शुरू से ही अव्वल थे। स्थानीय डीएवी इंटर कालेज से ही 1993 में हाईस्कूल की परीक्षा में टाप करने के बाद इंटर भी यहीं से अच्छे नम्बर से पास किया। इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद चले गये। 1999 में कानपुर विश्वविद्यालय से तीसरे रैक के साथ बीएड करने के बाद उन्हे कई नौकरियां मिली। किंतु कुछ और ही करने का लक्ष्य बना चुके संजय ने स्नातकोत्तर के बाद लेक्चरर होने के बावजूद ज्वाइन नहीं किया। पिछले तीन वर्ष से वह इलाहाबाद में मार्केटिंग अधिकारी के रूप में कार्यरत है।
क्षेत्र के सपूत के आईएएस में चयन होने की खबर मिलते ही उसके पैतृक गांव समेत आस-पास के क्षेत्रों में खुशी की लहर दौड़ गयी। उनके पिता केदारनाथ चौरसिया ने बेटे की सफलता पर खुशी जाहिर करते हुये कहा कि उनके बेटे ने क्षेत्र समेत पूरे जनपद का मान बढ़ाया है। आईएएस में चयनित श्री चौरसिया उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के पूर्व निदेशक भगवान शंकर के फुफेरे भाई भी हैं।

यह सच है कि किसी भी व्यक्ति की सफलता में उसके आत्मिक कारण सबसे प्रभावी होते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ बलिया के संजय चौरसिया के साथ। आईएएस में 387 रैकर संजय इलाहाबाद में मार्केटिंग आफिसर है। सफलता से लबरेज संजय ने एक बातचीत में कहा कि प्रतियोगी छात्रों को आत्मविश्वास, मौलिक सोच और सहज लेखन को वरीयता देनी चाहिए। संजय ने बताया कि उन्होंने बिल्थरारोड से इंटर करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास से एमए किया। यूजीसी से तुरन्त 10 हजार की स्कालरशिप मिली। वर्तमान में मार्केटिंग आफिसर के रूप में कार्यरत रह कम समय में से ही समय निकालकर तैयारी में लगा रहा। संजय ने बताया कि सफलता के पीछे सतत अभ्यास है। उन्होंने कहा कि किताबों से समरी इकट्ठा कर अपनी सोच के साथ एकदम सहज लेखन पर बल दिया। बताया कि नौकरी के बाद सुबह शाम जब भी समय मिलता था अध्ययन, मौलिक लेखन, तुलनात्मक अध्ययन और सहज भाषा पर विशेष जोर देता था। कहा तुलनात्मक अध्ययन और मौलिक शैली ने ज्यादा काम किया। उदाहर के तौर पर बताया जैसे 1857 की क्रांति के बारे में लिखने में 1776 की अमेरिकी सिचुएशन के बारे में तुलनात्मक तरजीह देने से निश्चित रूप से फायदा होगा। संजय ने कहा कि पढ़ना मौलिक सोचना सहज लिखना प्रतियोगी छात्रों की सफलता के लिए अनिवार्य है।
बहुत ही सादगी व सामान्य जीवन जीने वाले संजय चौरसिया ने अपनी सफलता को अपने पिता केदारनाथ चौरसिया की प्रेरणा, भाइयों का प्यार व पूरे परिवार के सहयोग का परिणाम बताया है। कहा कि समाज के विकास व बढ़ी विसंगतियों को दूर करने के लिये भगीरथ प्रयास करूंगा। एक सवाल के जवाब में संजय ने कहा कि पूर्वाचल में हर तीन किलोमीटर की परिधि में एक व्यक्ति या तो आईएएस, पीसीएस होता है, या एमपी, एमएलए या मंत्री जिसका मूल कारण है यहां की मजबूरी, बेरोजगारी व बिगड़ चुका सामाजिक ढांचा जिसे एक सार्थक व ठोस प्रयास से ही दूर किया जा सकता है।