हर युग में बदलता नारियों का स्वरूप


सत्य स्वरूप परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना मानव है और उसे अलंकृत करने की सृजनकर्ता के रूप में नारी की रचना की।
ये दो विशेषता सृष्टि को चलाने और दायित्व निर्वहन के लिए पर्याप्त है।
संसार के परिवर्तन प्रवाह में नारियों का संसार भी परिवर्तित हो रहा है। वे अपने अंधेरे अतीत को छोड़कर उज्जवल एवं गौरवशाली भविष्य की ओर पांव बढ़ा रही है।



कल तक जिस दहलीज के भीतर वे लज्जा, डर, संकोच, इज्जत, मान-सम्मान आदि को समेटे हुए घूंघट की आड़ में सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देती थी। आज उसी नारी की पीढ़ी ने उस दहलीज को लांघकर विभिन्न कौशलों में पारंगत डर, लज्जा, संकोच और घूंघट को उसी दहलीज के भीतर छोड़ दिया है।
आधुनिक नारी स्वयं की अंतनिर्हित क्षमता सूझ-बूझ एवं साहस का परिचय देती हुई अपने दृढ़ इरादों और आत्मविश्वास के साथ पुरूष प्रधान समाज में अपने स्वतंत्र अस्तित्व का परचम लहरा रही है।
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकास के प्रत्येक क्षेत्र में नारियों का बोलबाला है, जो परिवार एवं समाज में माँ, बहन, बेटी, बहु, मित्र एवं पत्नी आदि विभिन्न रूपों में जुड़ी हुई है।



वर्तमान नारी अपनी अस्मिता की उत्थान के लिए तकनीकि साधनों एवं यंत्रों के माध्यम से कौशल को बढ़ाने हेतु प्रत्येक क्षण प्रयत्नशील है। शैक्षिक जगत से लेकर सौंदर्य जगत तक अपने व्यक्तित्व को सवांर रहीं है।
किंतु आज की महान नारी जो गौरव गाथा लिख रही है और दो दशक पूर्व की नारियों ने जो गाथाएं लिखी थी, उनमें जमीन-आसमान जितना अंतर हो गया है। पूरा इतिहास गवाह है, उसमें जो पारदर्शिता थी वों जन-जन के रोम-रोम में समाहित थी। संपूर्ण जीवन वे दूसरों के हित के लिए लड़ती थी। संघर्ष और चुनौतियों का सामना अंतनिर्हित सूझ-बूझ एवं विवेक से करती थी। गरीबी एवं साधनहीनता की दंश झेलकर अपने अंतद्र्वन्द्व के आँसुओं से इतिहास लिखती थी।



उन महान नारियों के साथ न तो बड़े व्यवसायी लोगों से संबंध होता था न कोई राजनीति अप्रोच। और न ही इतने पैसे होते थे कि प्रेस और चैनल वालों को खरीद कर अपनी पब्लिसिटी बना सके। उनकी
गुणवत्ता में जो पारदर्शिता झलकती थी वहीं उनकी असली पहचान होती थी।
आज की नारी विकास के प्रत्येक क्षेत्र में अपना रूतबा तो बढ़ा रहीं है किंतु गुणवत्ता और पारदर्शिता नाम मात्र की रह गई है।
वे बडे़ं-बडे़ं राजनेता एवं प्रेस-चैनलों के माध्यम से अपनी पहचान बनाने के होड़ में भाग रहीं है। भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न लक्जरी जीवन व्यतीत कर रही हैं। पब्लिसिटी पाने के होड़ में लाखों-करोड़ों रूपए एडवरटाइज्मेंट देने के पीछे खर्च कर देती है। कितनी नारियां तो ऐसी है, जो समाज में लोकप्रियता पाने के लिए बडे़ं राजनीतिज्ञ एवं दलालों से अनैतिक संबंध रखती है और जनता के सामने सितारा बनकर पब्लिसिटी कमा रही है।



आज प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से विभिन्न पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर नारियों की वेदना, व्यथा, गौरव, नारी शक्ति और प्रतिष्ठा के बारे में लोग उत्सुकता पूर्वक पढ़ और सुन रहे हैं, किंतु कभी किसी ने नारी के उन रूपों को देखने का प्रयास किया है, जो पश्चिमी सभ्यता में ढ़लकर समाज में अराजकता फैला रही है।
एक ओर जहां नारी पुरूषों से कंधा से कंधा मिलाकर विकास के हर क्षेत्र में सहयोग कर रही है, वहीं दूसरी तरफ नारी का दूसरा रूप नगरों-महानगरों के क्लब, डांसबार, पार्क एवं सार्वजनिक स्थानों पर हम उम्र के लड़कों के साथ अश्लील हरकते करती हुई नजर आती है।
आखिर! नारी का एक रूप तो ये भी है, लोग गंभीरता से इस पर विचार क्यों नहीं करते हैं। एक पुरूष यदि समाज विरोधी कार्य करता है तो सारे पुरूषों को उसी में समेट लिया जाता है, पुरूष शब्द घृणा का शब्द बना दिया जाता है, जबकि सारे पुरूष ऐसा नहीं करते हैं। आखिर नारियों के नकारात्मक रूप को क्यों दबा देते हैं लोग?



कुछ नारी ऐसी है जो आजादी और अधिकार के तराजू पर अपने आप को रखकर बाजार की भोग्या बन गई है। विभिन्न तकनीकी साधनों एवं यंत्रों के माध्यम से जितने कौशल बढ़ा रहीं है, उतने ही तन खुलते जा रहे हैं। आज मानवाअधिकार और खुली आजादी का बल पाकर महानगरी सभ्यता की बहु-बेटियां इतनी बिगड़ैल स्वभाव की होती जा रही है, जिन्हें परिवार के दायरे में रख पाना मुश्किल हो रहा हैं।
कही-कहीं नारियों का ऐसा रूप देखने को मिल रहा है, जो अधिकार और कानून का दांवपेंच खेलकर पुरूषों को बर्बाद कर देती है। उस नारी का पुरूष से कोई भी संबंध हो सकता है पति-पत्नी,मित्रता,प्रेमी-प्रेमिका, भाई-बहन या कोई अन्य रिश्ते।
पुरूषों ने महिलाओं पर लगभग दो दशक पूर्व जो अत्याचार एवं बर्बरता का व्यवहार किया है उसे हम आप इन्कार नहीं कर सकते हैं, किंतु आज यह आंकड़ा पूर्णयतः के दायरे में नहीं आता हैं। अधिकांश पुरूषों ने महिलाओं को कष्ट दिया है किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि सारे पुरूष ने महिलाओं पर अत्याचार किए हैं।
घरेलु हिंसा और दहेज प्रताड़ना की जो दंश नारी को झेलना पड़ता था वो समाज के लिए शर्मशार और निंदनीय अपराध था। आज भी कहीं न कहीं इसका ज्वलंत उदाहरण देखने को मिल जाता हैं।
आज नए परिवेश में ढ़ली अधिकांश नारी अपनी अस्मिता की रक्षक स्वयं बन रहीं है। कानून और अधिकार का बल पाकर देश-दुनिया में एक नई मिशाल कायम रहीं है। आज नारी हिंसा को रोकने के लिए तरह-तरह के कानून बनाए गए है और उनके सर्वांगीण विकास के लिए विशेष अधिकार एवं बल दिए गए है, जो पूर्ण रूप से फल-फूल रहा है।
किंतु इनमें से कुछ नारियां ऐसी है जो इंहीं कानून और अधिकार का फोर्स पाकर न जाने कितने पुरूषों को दहेज और घरेलु हिंसा के नाम पर झूठे आरोप लगाकर बर्बाद कर देती है।
ये वहीं नारी होती है, जिनके ऊपर विशेष रूप से पश्चिमी सभ्यता का रंग चढ़ा होता है। मन और चरित्र जिसका दूषित होता है। परिवार के साथ रहना जिसे नासूर लगता है और घर के श्रेष्ठ एवं बुजुर्गों द्वारा बनाए हुए आदर्शों और मूल्यों को समझ नहीं पाती है। इसलिए उनके विचार ऐसे घर की दहलीज से टकराने लगते हैं।
अपनी हरकते और जिद से लोगों को मजबूर कर देती है। यदि बात उनके पक्ष में गई तो ठीक-ठाक है, किंतु किसी ने विरोध जताया तो उस पुरूष के ऊपर धारा 498-A का स्टंप लग जाता है।
ऐसी स्थितियां ज्यादा से ज्यादा बड़े व्यवसायी और राजनीतिक घरों से संबंध रखने वाले परिवार में देखी जाती है। उन्हीं घरों की नारी इन सब कार्यों में ज्यादा सक्रिय होती है।
जब तक उस स्त्री का पुरूष के साथ स्वार्थ चलता रहता है, तब तक कोई समस्या नहीं आती है किंतु जब रिश्तों में खटाश आनी शुरू हो जाती है तो ऐसी नारियां अपना उग्र रूप दिखाना शुरू कर देती है, तब उनके लिए यह आजादी और सम्मान की लड़ाई बन जाती है।
मैं सभी नारियों की बात तो नहीं कर सकती न तो सभी नारियां का ऐसा रूप है, किंतु कुछ नारियां ऐसी है, जो अपने बहुरूपये चाल से पुरूषों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई और ऐसी स्त्रियों के निराधार आरोपों से न जाने कितने पुरूष अपनी जिंदगी में उलझ कर रह गए।
मैं पाठकों से यह बताना चाहती हूँ कि विश्व की ज्यादा से ज्यादा आबादी पुरूषों की है, जिनके हाथ में समस्त देश की अधिकतर संपत्ति, कार्यालयी अधिकार, शक्ति एवं पहचान है चाहे वह पुरूष जिस कार्यक्षेत्र से जुड़ा हो।
मेरे विचार से न तो सभी पुरूष महिलाओं पर अत्याचार कर रहे हैं न ही सभी महिलाएं अराजक तत्वों से जुड़ी है। समय और परिस्थियों के बदलाव में जो परिवर्तन स्त्री व पुरूष के व्यवहार में होता है, चाहे वह नकारात्मक परिवर्तन हो या सकारात्मक, उसे समान दृष्टिकोण से जनता के सामने उभारने कोशिश करे ।
कानून को भी गंभीरता से इन मुद्दों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों ( स्त्री-पुरूष ) से सही तरीके से नई व्यवस्था लागू करनी होगी ताकि विकास के इन दोनों धुरी में सामंजस्य स्थापित हो सकें।