भगवान सूर्य की जन्मभूमि है देव

देव है भगवान सूर्य की पावन जन्मभूमि
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भगवान सूर्ये देव हिन्दू धर्म के देवता हैं। सूर्य देव का वर्णन प्राचीन वेदों और पुराणों में भी किया गया है। सूर्य देव का वर्णन एक प्रत्यक्ष देव के रूप में कई जगह किया गया है। भगवान सूर्यदेव को ही जगत की उत्पत्ति तथा अंत का कारण का कारण माना जाता है। शास्त्रों में सूर्य के बारे में विस्तार से बताया गया है।


सूर्य देव की जन्म कथा:-
एक कथा के अनुसार युद्ध में हारे हुए देवताओं की रक्षा के लिए प्रजापति दक्ष की कन्या अदिति ने सूर्य से उनके पुत्र रूप में जन्म लेने की प्रार्थना की। तब सूर्य देव ने प्रकट होकर अपने एक अंश को उनके गर्भ से जन्म लेने की बात कही। कुछ समय बीत जाने के बाद अदिति के गर्भ से सूर्यदेव का जन्म देवार्क भूमि पर हुआ। यह देवार्क भूमि आज देव और देव सूर्यमंदिर के नाम से प्रख्यात है। उन्होंने दैत्यों से देवताओं की रक्षा की। सूर्य के इस रूप को मार्तण्ड नाम से जाना जाता है।




इसी देवार्क भूमि पर कालान्तर से सूर्य की उपासना होती रही है। देवासुर संग्राम से पूर्व जब यहां भगवान सूर्यदेव की ब्रम्हा, विष्णु और महेश स्वरूप में स्थित प्रतिमा की पूजा सूर्य शक्ति के लिए देवों, ऋषि, मुनियों द्वारा की जा रही थी, तब यह जानकर राक्षस भड़क उठे। तब राक्षसों के एक बड़े समूह ने सूर्य की इस प्रतिमा को उखाड़ कर फेंक दिया। यह प्रतिमा कालान्तर तक जमीन के अंदर धंसा रहा। जब पुरुरवा वंशी ईला पुत्र राजा ऐल त्रेता के 12 लाख 16 हजार वर्ष पूर्व देवार्क भूमि पर वनविहार करते पहुंचे और शौच क्रियाकर्म के उपरांत गढ़े के कीचड़युक्त जल से प्रक्षालन किया तो उनका कुष्ट चर्मरोग दूर हुआ। भाव विभोर राजा ने रात्रि को उसी भूमि पर पड़ाव डाला। रात्रि के अंतिम पहर में उन्हें स्वप्न दिखा की यहां भगवान सूर्यदेव की प्राचीन प्रतिमा गढ्ढे में दबी है। उन्हें स्वप्न में आदेश मिला कि इस प्रतिमा को बाहर निकालकर स्थापित करो।
तड़के राजा को नींद खुली तो जैसे उन्हें अपने स्वप्न्न पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। जब राजा के आदेश पर उनके सेवकों ने खुदाई की तो सूर्यदेव के तीनों स्वरूप ब्रह्म, विष्णु, महेश की प्रतिमा मिली।


राजा को स्वप्न्न के मुताबिक उस प्रतिमा को स्थापित करना था। इसके लिए मंदिर का निर्माण आवश्यक था। मंदिर निर्माण के लिए राजा ऐल ने भगवान विश्वकर्मा का ध्यान किया। चूंकि राजा ऐल एक धर्मात्मा व न्यायकारी थे। इसलिए भगवान विश्वकर्मा शीघ्र प्रसन्न हो प्रकट हुए और राजा से वर मांगने को कहा।
राजा ने कहा कि भगवन ! इस सूर्य की प्रतिमा को स्थापित करने के लिए आप एक मंदिर का निर्माण करें।
भगवान विश्वकर्मा ने एवमस्तु ! कहकर अंतर्ध्यान हो गए।
उसी रात्रि एक पहर में ही भगवान विश्वकर्मा ने भव्य मंदिर का निर्माण कर दिया। देव का चमत्कारी मंदिर आज भी वैज्ञानिकों, शोधकों, अन्वेषकों के लिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि मंदिर का गणितीय मापदंड आम आदमी के सोच से उपर है।
राजा ने इस प्रतिमा को वैदिक रीति से मंदिर में स्थापित किया। आज भी देव सूर्यमंदिर को भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित माना जाता है।
आज भी यहां बड़ी आस्था पूर्वक सूर्योपासना की जाती है।


सूर्य देव के मंत्र:-
सूर्य देव का सबसे आसान मंत्र है "ॐ सूर्याय नमः " इस मंत्र का जाप प्रातः काल सूर्य प्रणाम और सूर्य को जल अर्पित करते समय करना चाहिए। साथ ही इच्छापूर्ति और पुत्र प्राप्ति के लिए जातक को रोज प्रातः उठकर इस मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम्। देहि देहि स्वाहा।। ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर!


सूर्य देव का स्वरूप सूर्य देव का निवास स्थान आदित्य लोक है। इनका वाहन सात घोड़ों वाला रथ है। इनके चार हाथ हैं। जिनमें से दो हाथों में इन्होंने पद्म पकड़ा हुआ है तथा दो अन्य हाथ अभय और वरमुद्रा में हैं। छठ पूजा का त्यौहार छठ पूजा भगवान सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व है। यह पर्व मुख्यतः दो दिन तक मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से सूर्य भगवान की पूजा की जाती है।


सूर्य देव के नाम :-


आदित्य •मार्तड • भास्कर •रवि • लोकप्रकाशक • लोक चक्षु •गृहेश्वर • त्रिलोकेश • तपन •सप्ताश्ववाहन •गभस्तिहस्त •सर्वदेवनमस्कृत उनके नाम हैं।


सूर्य भगवान का परिवार:-
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार सूर्य देव की माता का नाम अदिति तथा पिता का नाम महर्षि कश्यप है। इनकी दो पत्नियां हैं छाया और संज्ञा। छाया और सूर्य के पुत्र शनि देव हैं।


सूर्य देव से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें :-


1. सूर्य देव वाहन सात अश्वों वाला रथ है।
2. सूर्य देव बहुत गतिमान माने जाते हैं क्योंकि यह निरंतर चलते रहते हैं।
3. इन्हें दिन-रात का विधाता तथा दिशाओं का विभाजक माना जाता है।
4. भगवान सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव हैं। शनिदेव को सूर्यदेव का शत्रु माना जाता है। कथानुसार दोनों पिता-पुत्र कभी एक साथ नहीं रहते।
5. हिन्दू धर्मानुसार इस संसार में वही अकेले प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले देवता हैं।