अयोध्या विवाद का सत्यार्थ क्या है, जानें

मंदिर के मलबे पर ही बनी थी बाबरी मस्जिद, 53 मुसलमानों ने पताल से निकाले मंदिर के सबूत


मुसलमानों की विजय के वक्त अयोध्या में तीन महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर थे; जन्मस्थान मंदिर, स्वर्गद्वार मंदिर और ठाकुर मंदिर।


पहले पर बाबर ने मस्जिद बनवा दी, जिस पर अभी भी उसका नाम खुदा है।



पुरातत्व बताता है कि अयोध्या सिर्फ हिंदुओं की मान्यता नहीं है, मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात कोरी आस्था नहीं है; जिन पुरातात्विक सबूतों से बाबरी मस्जिद का दावा कमजोर होता है और जिसे हाई कोर्ट ने भी प्रमाणिक माना था, उन्हें जुटाने वालों में 53 मुसलमान थे इनमें सबसे प्रमुख नाम के के मुहम्मद का है।


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के क्षेत्रीय निदेशक रहे के के मुहम्मद मलयालम में लिखी अपनी आत्मकथा *जानएन्ना भारतीयन* में बताते हैं कि 1976-77 में ही इस बात के सबूत मिल चुके थे कि बाबरी मस्जिद असल में मंदिर है; उनकी आत्मकथा हिंदी में *मैं भारतीय हूँ* नाम से है; वैसे ब्रिटिश राज में पीटर कारनेगी ने भी लिखा था, *यह बात स्थानीय तौर पर पुष्ट होती है कि मुसलमानों की विजय के वक्त अयोध्या में तीन महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर थे जन्मस्थान मंदिर, स्वर्गद्वार मंदिर और ठाकुर मंदिर .*. *पहले पर बाबर ने मस्जिद बनवा दी जिस पर अभी भी उसका नाम खुदा है, दूसरे मंदिर के साथ औरंगजेब ने वैसा ही किया, तीसरे पर भी बाद में मस्जिद बना दी गई .*. *ये सब इस्लाम के उस मशहूर सिद्धांत के आधार पर किया गया जिसके तहत उन सभी पर धर्म थोप दिया जाता है, जिन्हें जीत लिया गया हो।*


कारनेगी फैजाबाद का पहला ब्रिटिश कमिश्नर था, उसने ही अवध का पहला गजेटियर तैयार किया था; कारनेगी के लिखे से जाहिर है कि बाबरी मस्जिद उसी जगह पर बनाई गई थी, जो जन्मस्थान है।


यदि कारनेगी के दावों को नकार दें तो भी खुदाई से मिले साक्ष्य बार-बार इस सत्य को दुहराते हैं कि बाबरी मस्जिद असल में मंदिर के मलबे पर खड़ा किया गया था; मुहम्मद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, *हमें विवादित स्थल से 14 स्तंभ मिले थे सभी स्तंभों में गुंबद खुदे हुए थे; ये 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिरों में मिलने वाले गुंबद जैसे थे गुंबद में ऐसे 9 प्रतीक मिले हैं जो मंदिर में मिलते हैं।*


1976-77 में पुरातात्विक अध्ययन के लिए अयोध्या में प्रो. बी बी लाल की अगुवाई में खुदाई हुई थी; इस टीम में मुहम्मद भी थे बकौल मोहम्मद, *खुदाई के लिए जब हम वहाँ पहुंचे तो मस्जिद की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखाई देते थे मंदिर के उन स्तंभों का निर्माण 'ब्लैक बसाल्ट' पत्थरों से किया गया था; स्तंभ के नीचे भाग में 11वीं और 12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश बनाए गए थे .*. *मंदिर कला में पूर्ण कलश 8 ऐश्वर्य चिन्हों में एक माने जाते हैं।*


एक इंटरव्यू में मोहम्मद ने बताया था कि उस समय इन साक्ष्यों पर उतनी बात नहीं हुई; जब अयोध्या का विवाद गहराया तो उस उत्खनन की रिपोर्ट को लेकर संदेह जताए गए, इसके बाद हाई कोर्ट के आदेश पर एएसआई ने 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 के बीच राम जन्मभूमि परिसर की खुदाई की; खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, जिनमें से 52 मुसलमान थे।


खुदाई के बाद एएसआई ने 22 सितंबर 2003 को अपनी 574 पन्नों की रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपी; इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर हाई कोर्ट के तीन जजों ने माना कि विवादित स्थल का केंद्रीय स्थल रामजन्मभूमि ही है।


खास बात यह रही कि तीनों जज गर्भगृह के सवाल पर एकमत थे।
हेमंत शर्मा ने अपनी किताब *युद्ध में अयोध्या* और *अयोध्या का चश्मदीद* में इन घटनाओं का विस्तार से ब्यौरा दिया है।


वे लिखते हैं, *एएसआई ने कुल 90 खाइयाँ खोदीं; पूरे क्षेत्र को पाँच हिस्सों में बांटा, इनमें पूर्वी, दक्षिणी, पश्चिमी, उत्तरी क्षेत्र और उभरा हुआ प्लेटफॉर्म शामिल था; सभी क्षेत्रों में क्रमवार खुदाई हुई, जिससे ढाँचों की प्रकृति और उसकी सांस्कृतिकता का अंदाजा लगे . जो अवशेष मिले, उससे साबित होता था कि वहाँ 11वीं शताब्दी का हिंदू मंदिर था।


खुदाई के दौरान निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर सवाल नहीं उठे, इसके भी बकायदा इंतजाम किए गए थे; हेमंत शर्मा ने इसका ब्यौरा देते हुए लिखा है, *समूची खुदाई और ढाँचों के अभिलेखीकरण की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई खुदाई न्यायिक पर्यवेक्षकों, वकीलों और संबंधित पक्षों या उनके नामित व्यक्तियों की मौजूदगी में संपन्न हुई .*. *खुदाई में पारदर्शिता हो, इस खातिर सारी उत्खनित सामग्री दोनों पक्षों की मौजूदगी में ही सील की जाती थी इसे उसी दिन फैजाबाद के कमिश्नर की ओर से उपलब्ध कराए गए स्ट्रांग रूम में रखा जाता था; हर रोज इस स्ट्रांग रूम को बंद करने के बाद सील किया जाता था।*


एएसआई की रिपोर्ट में खुदाई के दौरान पाए गए अभिलेखों के तीन हिस्सों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी भी है; इनमें एक नागरी में और दो अरबी में पाए गए थे अरबी अभिलेख में एक 16 वीं शताब्दी की नस्ख शैली में था इसमें कुरान की एक आयत खुदी थी; दूसरा अरबी अभिलेख भी 16 वीं शताब्दी के शुरुआत की शैली में था इसमें अल्लाह शब्द खुदा था; एएसआई के मुताबिक नागरी का पाँच वर्णों वाला अभिलेख 11 वीं शताब्दी का था के के मुहम्मद बताते हैं कि विवादित ढाँचा विध्वंस के बाद मलबे से *विष्णु हरिशिला पटल* मिला था इसमें 11वीं और 12वीं सदी की नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में लिखा गया है, *यह मंदिर बाली और दस हाथों वाले (रावण) को मारने वाले विष्णु (श्रीराम विष्णु के अवतार माने जाते हैं) को समर्पित किया जाता है।*


 एक रिपोर्ट के अनुसार, एएसआई की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि विवादित ढॉंचे के ठीक नीचे एक बड़ी संरचना मिली है; जो अवशेष मिले हैं वह ढाँचे के नीचे उत्तर भारत के मंदिर होने का संकेत देते हैं, यही नहीं 10वीं शताब्दी के पहले उत्तर वैदिक काल तक की मूर्तियाँ और अन्य वस्तुओं के खंडित अवशेष मिले हैं; इनमें शुंग काल की चूना पत्थर की दीवार और कुषाण काल की बढ़ी संरचना शामिल है।


एएसआई रिपोर्ट में कहा गया है कि विवादित ढांचे के नीचे मिली विशाल संरचना में नक्काशीदार ईंटें, देवताओं की युगल खंडित मूर्तियाँ, नक्काशीदार वास्तुशिल्प, पत्तों के गुच्छे, अमालका, कपोतपाली, दरवाजों के हिस्से, कमल की आकृति जैसी चीजें मिली हैं विवादित मस्जिद के ठीक नीचे मिले इमारत का आकार 50 गुना 30 मीटर उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम था, इसके 50 खम्भों के आधार मिले हैं इसके केंद्र बिंदु के ठीक ऊपर विवादित मस्जिद के बीच का गुंबद है, जहाँ अस्थायी मंदिर में भगवान राम की मूर्तियॉं रखी होने की वजह से खुदाई नहीं हो सकी।


तीन अभिलेख *.*.


दो अरबी में और एक नागरी में; अरबी के दोनों अभिलेख 16वीं शताब्दी के पाँच वर्णों का नागरी अभिलेख 11वीं शताब्दी का, 16वीं शताब्दी के बाद का इतिहास तो आपको वामपंथी इतिहासकारों ने खूब पढ़ाया है और ये भी कि मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद नहीं बनाई गई थी।