भारत में बढ़ती मुफ्तखोरी की संस्कृति

मुफ़्तख़ोरी की पराकाष्ठा और बढती संस्कृति


नोएडा।  मुफ़्त दवा, मुफ़्त जाँच, लगभग मुफ़्त राशन, मुफ़्त शिक्षा,  मुफ्त विवाह, मुफ्त जमीन के पट्टे, मुफ्त मकान बनाने के पैसे,  बच्चा पैदा करने पर पैसे,  बच्चा पैदा नहीं (नसबंदी) करने पर पैसे, स्कूल में खाना मुफ़्त,  मुफ्त जैसी बिजली 200 रुपए महीना,  मुफ्त तीर्थ यात्रा, मरने पर भी पैसे।



जन्म से लेकर मृत्यु तक सब मुफ्त । मुफ़्त बाँटने की होड़ मची है,  फिर कोई काम क्यों करेगा ?  देश का विकास मुफ्त में पड़े पड़े कैसे होगा? 


पिछले दस सालों से ले कर आगे बीस सालों में एक ऐसी पूरी पीढ़ी तैयार हो रही है या हमारे नेता बना रहे हैं, जो पूर्णतया मुफ़्त खोर होगी!


अगर आप उन को काम करने को कहेंगे तो वो गाली दे कर कहेंगे की सरकार क्या कर रही है?


ये मुफ़्त खोरी की ख़ैरात कोई भी पार्टी अपने फ़ंड से नही देती। टैक्स दाताओं का पैसा इस्तेमाल करती है!


हम नागरिक नहीं परजीवी तैयार कर रहे हैं!
देश का अल्प संख्यक टैक्स दाता बहुसंख्यक मुफ़्त खोर समाज को कब तक पालेगा ?


जब ये आर्थिक समीकरण फ़ेल होगा तब ये मुफ़्त खोर पीढ़ी बीस तीस साल की हो चुकी होगी जिस ने जीवन में कभी मेहनत की रोटी नही खाई होगी हमेशा मुफ़्त की खायेगा! नहीं मिलने पर, ये पीढ़ी नक्सली बन जाएगी, चोर ,डाकू ,उग्रवादी बन जाएगी, पर काम नही कर पाएगी!


सोचने की बात है कि सरकारें कैसे समाज का, कैसे देश का निर्माण कर रही हैं ? 


 गम्भीरता से चिंतन करिए।