भगवान विश्वकर्मा जयंती पर कवि बाबा कानपुरी की रचना

भगवान विश्वकर्मा जयंती
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कल संपूर्ण शिल्प जगत के आचार्य भगवान विश्वकर्मा जी की जयंती है उनके चरणों में यह कविता-------


हम महर्षि की संताने हैं,
कौन नहीं उसको जाने हैं। 
               हम महर्षि की संतानें हैं।।


वह महर्षि जिसने मानव को 
मानव बन जीना सिखलाया।
वह महर्षि जिसने शतपथ पर
 हम सबको बढ़ना सिखलाया
हम वनचर थे, पशुवत वन-वन
वनाहार करते फिरते थे,
हमें बना सामाजिक प्राणी 
मिल-जुलकर रहना सिखलाया।
तभी सभी उसको माने हैं।
               हम महर्षि की संताने हैं।


विश्व संस्कृति का प्रतीक,
हम सबका पालनहार वही हैं। जगतपिता है वही और
करता जग का संहार वही है।
ज्ञान चक्षु से कर अवलोकन 
मैंने उसको पहचाना है।
कर्म रूप में सारे जग का
हर करता निर्माण वही है ।
तभी सभी उसको माने हैं।
              हम महर्ष की संताने हैं।। 


तन ढकने के लिए वस्त्र 
रहने के लिए मकान बनाया।
गमनागमन के लिए गाड़ी 
वायुयान जलयान बनाया।
तन की द्युति दूनी हो जिससे
भिन्न-भिन्न आभूषण देखो,
बर्तन-भाड़े और न जाने
हैं क्या-क्या सामान बनाया। 
फिर भी उससे अनजाने हैं।
             हम महर्षि की संताने हैं।।


असुरों के अत्याचारों से
हरिजन जब सभी अधीर हो गए।
अत्याचार बढ़े दिन-दिन 
अत्याचारी बेपीर हो गये।
तब दधीचि की हड्डी से 
गांडीव और शिवचाप बनाया,
भ्रगुपति का देख कुठार सभी 
चंपत बलशाली वीर हो गए ।
भगे न फिर वापस आने हैं।
                     हम महर्षि संताने हैं
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हास्य कवि बाबा कानपुरी
ग्राम-सदरपुर, सेक्टर 45, नोएडा
9818217925,94120000280