बिहार में बाढ़ त्रासदी पर राजनीति नहीं, सेवाभावी काम अधिक हो

नई दिल्ली। बिहार के कई जिलों में बाढ़ की रौद्ररूप, तबाही और  त्रासदी जारी है। बिहार प्रदेश के 12 जिलों में आई बाढ़ से सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अबतक 102 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि करीब 72 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। वहीं, बाढ़ की वजह से आम जनजीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो गया है। बाढ़ के कारण आम जनता को जहां जगह मिल रहा है वहीं जिंदगी गुजारनी पड़ रही है। हालात बेकाबू है। सरकार के द्वारा राहत पहुंचाने की कोशिश ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। दिल्ली में बैठे राजनीतिबाज दिल्ली से ही राजनीति के चकले पर रोटी बेल रहे हैं। आरोप- प्रत्यारोप का स्वांग भी खूब भरा जा रहा है। जबकि बिहार हर साल बाढ़ की त्रासदी से जूझता है, पर आज तक राजनीतिकबाजों ने बिहार को इस भंवर से उबारने की ईमानदार कोशिश नहीं की है। यह बिहार के लोगों का दम है कि जैसे-तैसे अपने सबकुछ गंवाने के बाद भी उठ खड़े हो जाते हैं। देखिए बाढ़ में फंसे लोगों का हाल:-



प्रदेश से जो सूचना मिल रही है उसके मुताबिक दरभंगा के काकेघाटी गांव में लोग हाईवे 57 के किनारे जिंदगी जीने को मजबूर हैं। स्थानीय लोगों की सुरक्षा को पुख्ता किया गया है और हाईवे को भी चालू रखा गया है। आपदा प्रबंधन विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक बिहार के 12 जिले शिवहर, सीतामढी, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, सुपौल, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया एवं कटिहार में अबतक 78 लोगों की मौत के साथ कुल 102 लोगों की मौत हुई है जबकि लगभग 72 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।


 सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार में बाढ से मरने वाले 102 लोगों में सीतामढी में 27, मधुबनी में 23, अररिया में 12, शिवहर एवं दरभंगा में 10-10, पूर्णिया में 9, किशनगंज में 5, सुपौल में 3, पूर्वी चंपारण में 2 और सहरसा के एक व्यक्ति शामिल हैं। बिहार के बाढ प्रभावित इन 12 जिलों में कुल 133 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं जहां 114921 लोग शरण लिए हुए हैं । उनके भोजन की व्यवस्था के लिए 776 सामुदायिक रसोई चलाए जा रहे हैं।


केंद्रीय जल आयोग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, बिहार की कई नदियां बूढी गंडक, बागमती, अधवारा समूह, कमला बलान, कोसी, महानंदा और परमान नदी विभिन्न स्थानों पर रविवार सुबह खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी।
यह बिहार के लिए अजीब बात है कि भयानक बाढ़ त्रासदी के समय केंद्र सरकार का रुख काफी लचीला है। उसके मंत्री ईमानदार कोशिश की जगह बातें फेंकने में लगे हैं। ऐसे समय बातें नहीं, सेवाभावी होने की जरूरत है।