गायन में जलवे बिखेर रहे हैं घनश्याम चौरसिया

घनश्याम चौरसिया का गायकी के क्षेत्र में बढ़ता कदम
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" छू ना सकूं आसमान, तो ना ही सही दोस्तों…
आपके दिल को छू जाऊं, बस इतनी - सी तमन्ना है..!! "


गायकी के क्षेत्र में चौरसिया समाज के कई उम्दा गायक  अपनी धाक जमा रहे हैं। कई यंग जनरेशन ने इसे अपनी जीवन का हिस्सा बनाया है, तो कई शोहरत व मुकाम पाने के लिए बेताब हैं। ये गायक विभिन्न मंचों पर प्रस्तुती देकर अपनी हुनर को ऊंचाइयां दे रहे हैं।
 बिहार के बेगुसराय जिले के निवासी घनश्याम चौरसिया मैथिली व भोजपुरी के अलावा हिन्दी में भी गाते हैं। वे अब तक देश के 12 राज्यों में अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं।  उन्होंने बीए आनर्स करने के बाद पूरी तरह से गायन के क्षेत्र मे आ गए। 



घनश्याम बताते हैं कि उनकी ननिहाल लखीसराय जिला के गांव रतनापुर में है। एक बार वे वहां गए। वहां रामधुन गाने वालों को देखकर व अपने पिता जगदीश भगत को गाते देखकर उन्हें भी गाने का शौक लग गया। हालांकि उनके पिता ने कभी गांव से बाहर नहीं गाया। 
उन्होंने सबसे पहले बिहार के खगरिया जिले के बरीमालिया गांव में एक कार्यक्रम में गाया। पहले वे केवल रामायण के प्रसंग गाते थे। लोकप्रियता बढ़ी तो वे खुद भी गीत लिखने लगे, हालांकि वे अपने लिखे गीतों के साथ साथ अन्य गीतकारों के लिखे लोकगीत भी गाते हैं।


चौरसिया बताते हैं कि छठ पर्व का पौराणिक व वैज्ञानिक महत्व है। यह प्रकाश पर्व है तथा ऊर्जा देने वाला पर्व है। षष्ठी माता ब्रहमा जी की मानस पुत्री मानी जाती हैं तथा शिशुओं की रक्षा करती हैं। इसलिए छठ पर्व सभी का पर्व है। 
घनश्याम चौरसिया निश्चय ही अपने नाम के साथ चौरसिया का भी नाम रौशन कर रहे हैं। उन्हें चौरसिया समाज की ओर से हार्दिक बधाइयां।