क्या कमिश्नरी सिस्टम से भयभीत हैं आईएएस/पीसीएस अफ़सर ?


नोएडा। उत्तर प्रदेश सरकार ने महाराष्ट्र की तर्ज पर सोमवार को राजधानी लखनऊ और नोएडा में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू  कर दी है. इन तमाम कवायदों के पीछे सरकार का तर्क यह है कि जिले की लॉ एंड ऑर्डर समेत तमाम प्रशासनिक अधिकार अब तैनात किए गए पुलिस कमिश्नर के पास रहेंगे.


ऐसे में सबसे बड़ी दिक्कत पीसीएस अफसरों के सामने आने वाली है. सामान्य तौर से पीसीएस अफसरों को प्रशासनिक अमले में रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, लेकिन नोएडा और लखनऊ में अब एडीएम और एसीएम के सारे अधिकार पुलिस के पास होंगे. जबकि 12 से ज्यादा सीनियर पीसीएस अधिकारी अचानक दोनों जिलों में शून्य अवस्था में आ जाएंगे. पुलिस कमिश्नरी लागू होने के बाद सभी एसीएम रिलीव कर दिए जाएंगे. वहीं दोनों जिलों के सिटी के पास अब कोई काम नहीं बचेगा. लॉ एंड ऑर्डर के मामले में पुलिस कमिश्नर ही अब सर्वे सर्वा होगा. पुलिस को अब किसी भी प्रशासनिक अधिकारी से कोई आदेश लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.



भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के तहत जिला अधिकारी (DM) के पास पुलिस पर नियत्रंण करने के अधिकार होते हैं. दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) को कानून और व्यवस्था को विनियमित करने के लिए कुछ शक्तियां प्रदान करता है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो पुलिस अधिकारी कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, वे आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम या कमिश्नर या फिर शासन के आदेश के तहत ही कार्य करते हैं, लेकिन पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो जाने से जिला अधिकारी और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के ये अधिकार पुलिस अधिकारियों को मिल जाते हैं यानी जिले का सर्वे सर्वा कहा जाने वाला आईएएस अब कुछ नहीं होगा. आम तौर से IPC और CRPC के सभी अधिकार जिले का DM वहां तैनात PCS अधिकारियों को दे देता है.


प्रयोग के तौर पर ही सही उत्तर प्रदेश के दो जिलों में लागू होने वाले पुलिस कमिश्नर सिस्टम से प्रशासनिक अधिकारियों में भी भय का माहौल है. हालांकि प्रयोग के तौर पर इन तमाम सवालों को बेहतरी के तौर पर सरकार पेश कर रही है, लेकिन सरकार को यह भी सोचना होगा कि अगर मुख्यधारा में बैठे हुए आईएएस और पीसीएस अधिकारी सहयोग करना बंद कर देंगे, तो उत्तर प्रदेश में लागू की जा रही यह व्यवस्था कहीं बैकफायर न कर जाए.