नोएडा क्यों मेहरबान है डिफाल्टर बिल्डर्स पर ?


नोएडा। वैसे, नोएडा अथॉरिटी में बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के खेल समय-समय पर जगजाहिर होते रहे हैं। यहां भ्रष्टाचार की जांच भी बड़े स्तर पर किये गए हैं, मगर अंतिम रिजल्ट पर लीपापोती ही ज्यादा हुए हैं। कई मामले बिल्डर्स पर भी चले। लेकिन अंतिम रिजल्ट वही ढाक के तीन पात बनकर रह जाता है। 


सवाल है कि प्राधिकरण डिफाल्टर बिल्डर्स से भूमि बकाया राशि या परियोजनाओं के अधिग्रहण के लिए चुप क्यों हैं? आखिर क्यों नही सरकार लटके पड़े प्रोजेक्ट को पूरा करके लोगों को उसका घर देना चाहती है। आखिर क्यों सरकार भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओ पर नियंत्रण करने के बजाय नगर निगम बनाना चाहती है?


प्राधिकरण  की खामोशी पर एक बार फिर से सरकार तथा अधिकारी सवालों के घेरे मे आ गये है। पिछली सरकार के समय में हुए भूमि आवंटन को लेकर राईज एनजीओ के द्वारा खुला पत्र लिखा गया है, जिसमें सरकार से उच्च न्यायालय के आदेश को पालन नही करने को लेकर जानकारी साझा करने की मांग की गई है।


12 अक्टुबर 2012 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा में हुए भूमि आवंटन में अनिमियता पर एक जाँच करवाई जाये। इसके एक साल  बाद क्षेत्र के निवासियों ने आरोप लगाया था कि सरकार को दिये गये आदेश का सही अनुपालन नहीं किया गया है। निवासियों ने आरोप लगाया था  कि सरकार और बिल्डर लॉबी के मिली भगत से सारा काम किया गया है और सरकार इन्हें बचाना चाहती है।


तब निवासियों ने पाँच सुत्रीय ज्ञापन भी सौपे थे, जिसमें कहा गया था की आवास भू-खंडों के लिए भूमि का आवंटन की पूरी प्रक्रिया को ई-टेंडरिंग या फिर पारदर्शी निलामी के जरिये किया जाना चाहिए। बिल्डरों को आठ साल की किस्त के आधार पर जमीन आवंटन करने की प्रथा को खत्म कर देना चाहिए। सभी प्रोजेक्ट को 3 से 4 साल के बीच पूरा किया जाना चाहिए, ताकि निवेशक को जल्द से जल्द घर मिल सके। कंसोर्टियम के तहत ग्रुप हाउसिंग के लिए प्लॉट आवंटित करने की प्रथा को खत्म करने का भी आह्वान किया गया और छोटे-छोटे हाउसिंग प्रोजेक्ट लाने की बात कही गई थी।


इस प्रकरण को लेकर औद्योगिक विकास आयुक्त अनिल कुमार गुप्ता के द्वारा एक जाँच की गई और रिपोर्ट मे कहा गया कि मैने खुद ही इस क्षेत्र का दौरा किया है और स्थिति का आकलन भी किया है। यह जाँच सरकार से साझा किया गया। इसके बाद कुछ दिन पहले ही फाइल वापस मेरे पास आई । उन्होंने कहा था कि अब यह संबंधिक विभाग पर निर्भर करता है कि किन व्यक्तियों पर कारवाई किया जाय। यह बात मई 2012 में कहे गये थे।


यह पूरी जाँच प्रक्रिया 2002 से लेकर 2011 तक हुए भू-आवंटन को लेकर किया गया था। इसममें पाया गया कि औद्योगिक उपयोग के लिए लिये गये भूमि को “आवासीय” में बदल दिया गया । इस प्रक्रिया में कई नामी हस्तियों के नाम शामिल होने की आशंका जताई गई थी, जिसमें अधिकारी  मोहिंदर सिंह , जो बसपा के काफी करीबी माने जाते थे और अब सेवानिवृत हो चुके हैं, का नाम उछाला था।


राइज एनजीओ के द्वारा लिखा गया खुला पत्र उत्तर प्रदेश सरकार , मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, मुख्यसचिव उत्तर प्रदेश , सीओ नोएडा आर्थारिटी, जिलाधिकारी गौतमबुद्धनगर एवं मिडिया को लिखे गये थे। साथ ही प्रधानमंत्री, गृह सचिव भारत सरकार और एनसीआर प्लानिंग बोर्ड को काॅपी संग्लन  किया गया था।


सवाल है कि उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन के बाद जाँच और पाये अनिमियताओं को लेकर सरकार और प्राधिकरण कितना गंभीर है ? आखिर क्यों सरकार पिछले शासन तथा अधिकारियों और राजनेताओं को बचाना चाहती है? बिल्डर के डिफाल्टर होने से 2 लाख से अधिक बायर्स की उम्मीद सरकार की तरफ है। उसके लिए सरकार और नोएडा प्राधिकरण क्या करने जा रही है या फिर बायर्स ऐसे ही अपने खुन पसीने की कमाई देने के बाद दर- दर भटकते  रहेंगे ?


आखिर में सबसे बड़ा सवाल है कि सरकार भ्रष्ट अधिकारियों, नौकरशाहों तथा पूर्व या वर्तमान में नेताओं पर नियंत्रण करने बजाय नगर निगम बनाने बारे में सोच रही है, जिसके कारण सरकार पर भी कुछ अतिरिक्त खर्चे बढ़ने वाली है।  जिसपर सरकार आम नागरिक से हाउस टैक्स वसूलने के बारे मे सोच सकती है। नगर निगम बनाकर दो चार पार्षद और मेयर और जनता के उपर थोप दिये जायेंगे।


एनजीओ राईज का सवाल है :-



  1. उच्च न्यायालय के आदेश की अनुपालना में “जांच रिपोर्ट” के बारे में क्या @ Rs6K / Sqmts के बारे में भ्रष्टाचार के पैसे लेने के बाद थोक विक्रेताओं को डिफॉल्टर बिल्डर्स को भूमि आवंटन के संबंध में आदेश?

  2.  पिछले शासन के अधिकारियों, नौकरशाही,राजनेताओं की सुरक्षा करना चाहता है?

  3. डिफाल्टर बिल्डर्स के साथ अधिकारियों की नौकरशाही के राजनेताओं की सांठगांठ के कारण 2 लाख होम बायर्स के बारे में हमारी सुरक्षा के लिए क्या कार्रवाई और संकल्प योजना है?

  4. क्यों सभी अधिकारियों से भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के बजाय नए नगर निगम नागरिक सेवा निगम का गठन करने के लिए अधिक इच्छुक है?

  5. क्या अधिकारियों ने किसी सतर्कता विभाग की स्थापना की है। अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और विसंगतियों पर नजर रखने के लिए या किसी भी प्रणाली को विकसित किया गया है क्योंकि कोई भी भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायत कर सकता है?