21 दिनों का लॉकडाउन मजदूरों पर पड़ रहा भारी, पैदल निकल पड़े हैं अपने घर को

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 21 दिन के लॉकडाउन का असर मजदूरों पर साफ दिखाई दे रहा है। देश के विभिन्न भागों से दिल्ली व अन्य नगरों में काम करने वाले मजदूरों के लिए कोरोना वायरस कहर बन गया है। वे लोग मुश्किलात का सामना कर रहे हैं और बड़े पैमाने पर पैदल ही अपने वतन की ओर लौट रहे हैं। सरकार की कई बड़ी घोषणाओं पर भी उन्हें भरोसा नहीं रह गया है। उनका मानना है कि सरकार के द्वारा जारी घोषणाओं से उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला है, बल्कि वे और अधिक मुसीबत में फंस जाएंगे। इससे अच्छा है कि वह अपने घर लौट जाएंगे। उनका मामला बड़ा करुणाप्रद व दर्दीला है पैदल कई महिलाओं के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी पैदल चल रहे हैं।



इस घोषणा के साथ ही अनेक प्रतिष्ठानों ने अपने-अपने कर्मचारियों को घर जाने का फरमान सुना दिया है। ऐसा ही एक फरमान गुरुग्राम में नौकरी करने वाले राजकुमार को भी मिला। उसके मालिक ने कहा, 'घर जाओ और वहीं रहो।' 


पर, राजकुमार का घर तो हजार कि.मी. से भी दूर बिहार के छपरा में हैं। उसके पास सिर्फ 1 हजार रुपये हैं और उसे कोई अता-पता नहीं कि अगली सैलरी कब मिलेगा। ऐसे में गुरुग्राम में उसे कुछ नहीं समझ में आया और विकल्प के तौर पर वह गुरुग्राम से अपने घर के लिए पैदल ही निकल गया क्योंकि वाहन नहीं चल रहे हैं, ट्रेन भी नहीं चल रहे हैं। ऐसे में उसने पैदल चलने का मजबूरी अपना लिया।


वह अपनी पत्नी, तीन महीने की बच्ची और 58 वर्ष की मां के साथ बुधवार को अहले सुबह पैदल ही निकल गए गांव की ओर। उनकी तरह कई और लोग सड़क पर पैदल चलते मिले, इस उम्मीद में कि घर पहुंचने का कुछ-न-कुछ रास्ता तो निकल ही जाएगा। पैदल मार्च पर निकले लोगों का झुंड शाम तक यूपी पहुंच गया। उन्होंने दिनभर में दिल्ली को पार करते हुए 50 किमी की दूरी तय कर ली थी। कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें खाने का पैकेट दिए। झुंड बढ़ता गया कि यह सोचते हुए कि कहीं कोई गाड़ी मिल जाए। 


 
दिल्ली-एनसीआर से अचानक निकलने वालों की ऐसी कई झुंड सड़कों पर है। जो लोग गांव लौट रहे हैं, उनमें ज्यादातर फैक्ट्री और दिहाड़ी मजदूर हैं। फैक्ट्रियां और काम-धंधे बंद होने के कारण वो अचानक बेरोजगार हो गए हैं। उनका गांव की ओर पलायन सरकार के लिए भी चिंता का सबब है क्योंकि लॉकडाउन का मकसद ही खतरे में आ गया है जो लोगों की आवाजाही रोकना है। 


बुधवार शाम तक गाजियाबाद पहुंच चुके राजकुमार ने कहा, 'मैं कमरे का किराया कैसे दे पाऊंगा? घर लौटने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था। सब सामन्य होने के बाद जब मालिक का कॉल आएगा तभी मैं लौटूंगा।


मनोज ठाकुर गाजियाबाद के वैशाली की एक फैक्ट्री में काम करते हैं। आनंद विहार बस टर्मिनल से उन्हें कोई साधन नहीं मिला तो 10 घंटे पैदल चलकर दादरी तक पहुंचे। उन्होंने बताया, 'मैं फैक्ट्री के करीब किराये के कमरे में रहता हूं। मैं 3 बजे शाम को पैदल चलना शुरू किया और रात 1 बजे दादरी पहुंचा। मेरे पास खाना है, लेकिन पानी नहीं है। हाइवे पर एक भी दुकान भी खुली नहीं है।' मनोज को यूपी के एटा जिला स्थित अपना घर पहुंचने के लिए अब भी 160 किमी पैदल चलना था। 


 एटा की मनोरमा और उनकी 11 साल की बेटी भी पैदल चल रही हैं। उन्होंने कहा, 'हम जैसे लोगों को जीने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती है। हमारे पास इतना पैसा नहीं बचा है कि एक महीना किराये के कमरे में रहें। रातोंरात गाड़ियां बंद करने का फैसला लेने वालों को हमारे बारे में सोचना चाहिए था।' वो शायद आज घर पहुंच गई होंगी। उन्होंने अपनी बेटी के साथ रात कहां बिताई, पता नहीं।
लॉकडाउन के ऐलान के बाद मजदूरों को मालिकों ने या तो पैसे दिए ही नहीं या इतने दिए कि 21 दिन काटना संभव नहीं। ओंकार ने पूछा, 'मुझे 1 हजार रुपया देकर घर जाने को कह दिया। हम इतने पैसे से यहां कैसे रह सकते हैं। कमरे का किराया कहां से दें? महंगे हो रहे सामान कैसे खरीदें?' ओंकार और उनके छह साथी नोएडा की एक मिठाई दुकान में काम करते थे। उन्हें अपने घर आगरा पहुंचना है। 


 मोहन सिंह 10 दिन पहले ही मानेसर आए थे। उन्होंने कहा, 'मेरे पास पैसा नहीं बचा। मेरे परिवार को तीन दिन से ठीक से खाना नहीं मिला है।' मोहन बदायूं के हैं। वो परिवार के 10 सदस्यों के साथ 266 कि.मी. की पैदल यात्रा पर हैं। 


अजमेर के ओमप्रकाश कुशवाहा की गोद में सात महीने की बेटी है। अगर उन्हें रास्ते में कोई गाड़ी नहीं मिली तो घर पहुंचने के लिए करीब एक सप्ताह पैदल चलना होगा। दिल्ली-जयपुर हाइवे पर गुरुवार को ऐसे लोगों का जत्था अपने-अपने घरों की ओर जा रहा था। सबके पास सामानों का बोझ, कुछ के पास बच्चे भी। ज्यादातर की एक ही शिकायत- 'लॉकडाउन से पहले उन्होंने क्यों नहीं बता दिया?' फरीदाबाद से 550 कि.मी. दूर अमेठी के लिए निकले प्रताप गुप्ता ने कहा, 'पहले पता होता तो हमें अभी पैदल नहीं चलना पड़ता।' 


ग्रेटर नोएडा के यमुना एक्सप्रेस वे पर कुछ लोगों ने इन लाचार लोगों को खाने के पैकेट दिए। नोएडा पुलिस ने कहा कि वो इन मजदूरों की एक ही मदद कर सकते हैं कि उन्हें जाने दिया जाए। डीसीपी राजेश कुमार सिंह ने कहा, 'हम उन्हें रोक नहीं रहे हैं, लेकिन उनकी गतविधियों पर नजर जरूर रख रहे हैं। हम लाचार हैं क्योंकि लॉकडाउन में सड़कों पर कर्मशल वीइकल नहीं चला सकते।' 


यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को इन मजदूरों के लिए विशेष व्यवस्था करने की बात कही। उन्होंने पुलिस को इनके खाने-पीने और सुरक्षा की सुनिश्चित करने को कहा। उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से भी गुरुग्राम और फरीदाबाद से आ रहे मजदूरों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने का आग्रह किया। 


वहीं, देश के कई सांसदों ने अपने- अपने बंगलों पर अपने प्रदेश के वैसे लोगों को रहने की व्यवस्था कर रहे हैं जो निहायत स्थिति में काफी पीड़ित हैं और उन्हें खाने क्यों कुछ नहीं है, ना रहने के लिए जगह है।


वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज कहा कि दिल्ली में प्रवास कर रहे ऐसे गरीबों के  लिए संपूर्ण जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की है। बड़े पैमाने पर भोजन की व्यवस्था की जा रही है, ताकि कोई भूखा न रहे। बहरहाल सरकारी घोषणाओं को सुनते सुनते कई लोग उकता गए हैं और उन्हें आज भी सरकारी घोषणाओं के लाली पॉप पर भरोसा नहीं है। ऐसे में सबको सरकारी सहायता मिल ही जाए, कहना मुश्किल है।