गौतमबुद्ध नगर के नए डीएम बने सुहास एलवाई, पूर्व डीएम बीएन सिंह पर दिए गए जांच के आदेश

नोएडा।  सुहास एलवाई गौतमबुद्ध नगर के नए डीएम बनाये गये हैं। नए डीएम गौतमबुद्ध नगर के लिए रवाना हो चुके हैं। कल वे चार्ज संभाल लेंगे।



उधर, पूर्व जिलाधिकारी बीएन सिंह ने आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जुबान लड़ाने की कोशिश की और उन्हें जब फटकार मिला तो वे तिलमिला गए और उनके तेवर उग्र हो गए। पूर्व डीएम ने मुख्यमंत्री से वैसा ही व्यवहार किया जैसा वे आम नागरिकों से करते आए हैं। उनका तानाशाही रवैया मुख्यमंत्री के सामने भी प्रकट हुआ और जब उन्हें फटकार मिला तो मुख्यमंत्री से जबाबी बात की। अब औद्योगिक  विकास आयुक्त आलोक टंडन को बीएन सिंह की जांच को लगा दिया गया है।


बात-बात पर प्रथम दृष्टया शब्द का इस्तेमाल करने वाले बीएन सिंह अपने कार्यकाल में किसी को भी नहीं समझा।यहां तक कि पत्रकारों को भी वे हड़का कर रखते थे। अपने कार्यकाल के दौरान गौतम बुद्ध नगर में उनकी तानाशाही साफ देखी गई और यहां जनता से लेकर किसान तक सभी पीड़ित रहे।


गौतमबुद्धनगर डीएम विवाद को लेकर मुख्य सचिव आरके तिवारी का बयान आया है। गौतमबुद्धनगर के डीएम  बीएन सिंह की अनुशासनहीनता के खिलाफ विभागीय जांच की बात कही है।



नए जिलाधिकारी को लेकर यहां जनता में उत्साह है।  नए जिलाधिकारी सुहास खुशदिल मिज़ाज के इंसान हैं। उनके संबंध में बानगी है, ठोकरें आगे बढ़ने के लिेय प्रेरित करती हैं, जो प्रयास नहीं करते वो सफल नहीं होते, मेहनत हमेशा रंग लाती है, कोशिश अगर दिल से की जाय तो कामयाबी कदम चूमती है, और ऐसे ही उत्साह बढ़ाने वालेे न जाने कितने ही उदाहरण देकर डीएम सुहास एलवाई का नाम लिया जा रहा है। उन्होंने जिस तरह शारीरिक कमी को मात देकर जी तोड़ मेहनत की और पैरा बैडमिंटन का एशियन चैम्पियनशिप चीन में जीतकर भारत का नाम रोशन किया उसके बाद उनकी तारीफ होना लाजिमी है। उन्होंने न सिर्फ पैराबैडमिंटन की इतनी बड़ी प्रतियोगिता जीतकर खुद को ऊंचे मुकाम पर ला खड़ा किया है, बल्कि उन सभी लोगों के आईकॉन बन गए हैं, जो दुश्वारियों की चट्टान को पार कर सफलता का स्वाद चखना चाहते हैं।


कर्नाटका के शिमोगा जिले के मूल निवासी और आजमगढ़ में डीएम  रहे सुहास एलवाई बताते हैं,  परिश्रम उनकी मजबूरी नहीं बल्कि आदत है। यही वजह है कि चाहे पढ़ाई हो या फिर खेल, जहां उन्होंने हाथ आजमाया सफलता ने कदम चूमे। डिसिप्लिन, कान्संट्रेशन, स्मार्ट वर्क और सेल्फ कॉन्फिडेंट ये चार चीजें उनकी जिंदगी और सफलता में काफी अहम रोल अदा करती हैं। उन्होंने कहा कि ये चार चीजें ऐसी हैं जो सफलता से जुड़ी हुई हैं। कहा कि काम निर्धारित समय में पूरा हो जाय इसके लिये अनुशसन बहुत जरूरी है। किसी तरह की गलती की गुंजाइश न हो जिसका बाद में पछतावा हो, इसलिये अपने काम पर एकाग्रता यानि कनसंट्रेशन होना चाहिये। प्रयास ऐसा करें कि कम समय में अधिक परिणाम मिले, तो यही स्मार्ट वर्क है और यह सब करने के लिये जिस चीज की जरूरत है वह है सेल्फ कॉन्फिडेंट। सफलता के इन मूलमन्त्रों का पालन यकीनन बुलंदी के सपने को साकार करता है।


डीएम सुहास एलवाई को खेल का शौक बचपन से था। पर सबसे बड़ी बात यह है कि वह क्रिकेट के खिलाड़ी थे। उन्होंने हाई स्कूल शिमोगा से किया।  वहां वह स्कूल की ओर से क्रिकेट खेलते थे। उन्हें स्कूल की ओर से हाई स्कूल के दौरान बेस्ट ऑल राउण्डर का खिताब मिला। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी सूरत से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। यहां भी उनका और क्रिकेट का साथ रहा। उन्होंने संस्थान की ओर से इंटर युनिवर्सिटी चैम्पियनशिप में खेला और 2004 में क्रिकेट का बेस्ट ऑल राउण्डर का खिताब हासिल किया।


डीएम बचपन में बॉल बैडमिंटन खूब खेला था। इनके पिता जी भी बॉल बैडमिंटन के लोकल खिलाड़ी थे। पर इसके बाद जब स्कूल में पहुंचे तो वहां से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने तक वह क्रिकेट के ही खिलाड़ी बने रहे और कई खिताब हासिल किया। 2007 बैच में वह आईएएस चयनित हुए। इसके बाद उनहोंने आईएएस एकेडमी से बैडमिंटन खेलना शुरू किया। आईएएस की ट्रेनिंग आजमगढ़ से की थी। चूंकि आजमगढ़ में बैडमिंटन के कई राज्य स्तर के खिलाड़ी हैं सो उनकी संगत में इन्हें बैडमिंटन के खेल में न सिर्फ रुची हुई बल्कि वह इसे संजीदगी से खेलने लगे। आजमगढ़ में ट्रेनिंग के बाद मथुरा में सीडीओ हुए, हाथरस, महाराजगंज व जौनपुर में डीएम के पद पर रहे। जौनपुर से उनका ट्रांसफर आजमगढ़ हो गया। उन्होंने चार से पांच साल पहले लखनऊ में आईएसएस बनाम आईपीएस बैडमिंटन प्रतियागिता का खिलाब भी जीता। आजमगढ़ पहुंचे तो यहां कई राज्य स्तरीय खिलाड़ियों को हराने के बाद जब हौसला बढ़ा और उन खिलाड़ियों ने भी उन्हें प्रेरित किया तो पांच महीने पहले उन्होंने चीन में होने वाली पैराबैडमिंटन एशियन चैप्मियनशिप प्रतियोगिता के लिये तैयारी शुरू कर दी। बड़ी बात यह कि उन्हें ट्रेनिंग देने वाला कोई कोच नहीं था, खुद ही उन्होंने इण्डोनेशिया समेत बैडमिंटन के चैम्पियन देशों के खिलाड़ियों के वीडियो इंटरनेट पर देखा और उसी के अनुसार अपनी तैयारी की। कड़ी मेहनत और प्रेक्टिस के चलते ही उन्हें जीत हासिल हुई।