देश में लॉकडाउन की विभीषिका में जूझते पान उत्पादक और कारोबारी

नई दिल्ली। लॉकडाउन की विभीषिका को झेलते हुए एक माह से अधिक समय गुजर चुके हैं। इस दौर में लोगों को तरह-तरह की समस्याओं का जद्दोजहद सामना करना पड़ रहा है। कितने लोगों के उद्योग, कितने कारोबार, कितने व्यापार पर आज संकट के बादल मंडरा रहे हैं तथा कई तो तबाही के कगार पर खड़े हैं। इनमें चौरसिया समाज भी पीछे नहीं है क्योंकि इनका कारोबार बेहद ही कच्चा और जल्दी नुकसान देने वाला पान का कारोबार है। भले ही बिहार और यूपी के महोबा आदि में पान मंडियों की खोले जाने का समय निर्धारित कर दिया गया है, लेकिन इन मंडियों में पान खरीदार ही गायब हैं, तो फिर बड़ा सवाल उत्पन्न हो रहा है कि आखिर इन मंडियों को खोले जाने से क्या फायदा मिलने वाला है ! अगर पान कृषक पान को लेकर मंडी को पहुंचता है तो वहां खरीदार नहीं मिलते। बस, यहीं से समस्याओं का शुरुआत होता है।



पान खरीदारों की अपनी समस्याएं हैं। वे पान मंडियों से छोटे-छोटे दुकानों और देश के विभिन्न भागों तथा अंतरराष्ट्रीय भागों में सप्लाई करते हैं। पर, लॉकडाउन है तो लोग अपने -अपने घरों में कैद हैं। पान दुकान नहीं खुल रहा है,  लॉकडाउन के कारण लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं।  एक जिले से  दूसरे जिले की सीमाओं को सील कर दी गई है। वाहनों का आवागमन नहीं हो रहा है। ट्रेनें बंद है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार ठप्प पड़ा हुआ है। हवाई मार्ग बंद है। जलमार्ग भी बंद है। ऐसे में नहीं लगता  कि पान कृषको को मंडियों के लिए छूट दिए जाने से कोई बड़ा राहत मिलने वाला है। पान किसानों का कहना है कि खेत में पान टपक कर गिर रहे हैं और पान के सड़ने पर उसे कूड़ों के ढेरों पर फेंका जा रहा है। मतलब जो पान मुनाफा देने वाला था, वह आज कूड़े के ढेर पर ढ़ेर बन रहा है। पान की शोभा तो अधरों की लाली है। पान की शोभा तो देवी देवताओं के चरणों और पूजा पाठ में शोभायमान है, पर आज स्थिति कुछ अलग ही बन गई है।



बहरहाल, जबतक लॉकडाउन की समस्या खत्म नहीं होती है तबतक पान से जुड़े हुए किसी का भला नहीं होगा और उन्हें लॉक डाउन अवधि तक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। कहा जा रहा है कि पान की खेती करनेवाले किसानों की कमर लॉकडाउन ने तोड़ दी है। शहरों को सप्लाई करने के लिए तोड़े गए पान घरों में रखे-रखे बेकार हो गए हैं, जिन्हें मजबूर किसानों ने कूड़े में फेंक दिया। खराब पान की कीमत डेढ़ करोड़ से भी ऊपर बताई जा रही है, वहीं बाजार बंद होने के कारण किसानों ने बरेजों में लगे पान नहीं तोड़े तो यह भी पककर बेल से गिरने लगे हैं। अब किसानों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर पान को लेकर जाएं भी तो जाएं कहां। मंडियां बंद पड़ी हैं। पान की दुकानों पर ताले हैं। शौकीन घरों में कैद हैं। पान की खेती करनेवाले किसान इस समय बड़ा नुकसान झेल रहे हैं। 



 सरकार का दावा है कि लॉकडाउन करने से कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने में बहुत मदद मिली है। अन्य देशों में इतने दिनों में बहुत बुरा हाल हो चुका है। भारत में स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है, लेकिन सरकार को लॉकडाउन से होने वाले आर्थिक नुकसान के बारे में भी सोचना चाहिए।किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए यह सर्वोत्तम समय होता है, जिसके बल पर वह अपना साल भर का पूरा खर्च निकालता था,  जिससे वह अपने बेटे-बेटी की शादी, बच्चों के स्कूल का खर्च, अपनी खेतों में फिर से फसल उगाने के लिए खर्च इसी समय में निकालता था। क्या सरकार ने इसके बारे में कभी सोचा कि किसान बर्बाद होगा, तो देश की स्थिति क्या होगी? अगर किसान अपने खेतों में फसलें नहीं उगा पाएगा तो यह जो डंका पीटा जा रहा है कि अगले डेढ़ साल तक फ्री में बांटने भर का राशन हमारे स्टॉक में है, तो इससे ही सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा?  सवाल कठिन जरूर है, पर यह चिंतनीय भी है।



लॉकडाउन के कारण यूपी के प्रतापगढ़, जौनपुर, सुल्तानपुर, उन्नाव, बाराबंकी, रायबरेली, गाजीपुर, बलिया, ललितपुर, बांदा,आजमगढ़, हरदोई, लखनऊ, सीतापुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, महोबा आदि में पान किसानों का बुरा हाल है। हालांकि डीएम महोबा में पान किसानों के लिए सुबह 7:00 बजे से 10:00 बजे तक मंडी खोलने का आदेश जारी कर दिया है। बावजूद उस मंडी में पान किसानों का पान बेचना एक बड़ा मुसीबत से कम नहीं है।



पान व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि लॉकडाउन से चौरसिया समाज के पान कृषकों को दोहरी मार झेलना पड़ा है। दिसंबर और जनवरी माह में भीषण कड़ाके की ठंड ने पान की खेती को और व्यापार को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। पान की खेती कभी अतिवृष्टि, कभी अनावृष्टि, कभी पाला, कभी गर्मी, कभी आंधी, कभी तूफान, कभी आग, कभी ओलावृष्टि के कारण प्रभावित होता रहा है। इसमें लागत बहुत अधिक है और इसके बावजूद जोखिम भी भयंकर है। वैसे, जलवायु परिवर्तन के कारण 10- 15 सालों से पान उत्पादकों को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ा है।यही वह दौर रहा है जब चौरसिया समाज से बड़े पैमाने पर देश के विभिन्न औद्योगिक नगरों में पलायन हुआ है। लोग खेती- बारी छोड़कर नौकरी करने या मजदूरी करने को मजबूर हुए हैं। 



आंकड़ों के आईने में देखें तो देश में पान की खेती 50,000  हेक्टेयर में की जाती है और देश में 3.75 करोड़ से अधिक जनसंख्या पान व्यवसाय से जुड़ी हुई है। यूपी में 2750 एकड़ में पान की खेती की जाती है, तो मध्य प्रदेश में 1400 एकड़, गुजरात में 250 एकड़, राजस्थान में 150 एकड़, बिहार में 4200 एकड़, पश्चिम बंगाल में 3625 एकड़,  कर्नाटक में 8957 एकड़, तमिलनाडु में 56 25 एकड़, उड़ीसा में 5240 एकड़, केरल में 3805 एकड़, असम में 34 80 एकड़, आंध्र प्रदेश में 3250, महाराष्ट्र में 2950 एकड़ मेंपान की खेती की जाती है।


कहा गया है कि पान में एक नफासत और नजाकत है तथा पान खिलाना एक तहजीब है। बिहार का मगही पान हो या महोबा का देसावरी या जगन्नाथ का जगन्नथी पान बेहद स्वादिष्ट होता है। पान की एक दर्जन प्रजातियां तथा 300 उपजातियां तक बताई जाती है परंतु वैज्ञानिक इसे पांच या 6 प्रजातियों में ही सिमट देते हैं।



पान की किस्में बनारसी, सोफिया, बांग्ला, देसाबरी मीठा, सांची, कोलकाता, कपूरी, मघई आदि के नाम से मशहूर है। पान में फूल का न होना इसके प्रजनन की नई किस्में को विकसित करने में आगे नहीं बढ़ा पाता। साथ ही पान की खेती को सरकारी मदद का अभाव तथा गुटखा कारोबार ने काफी धक्का पहुंचाया है। पान के कारोबार से केंद्र को 1.55 लाख विदेशी डॉलर प्राप्त होते हैं। पान की फसल और रोजगार से देश में तकरीबन 700 करोड़ की आमदनी होती है। फिलहाल, सब कुछ ठहर गया है।