विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष
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कोरोनाकाल/पुस्तक पर दोहे/23.4.20
मित्र हमारी पुस्तकें, देती अद्भुत ज्ञान।
राह दिखाकर फिर इसे, करती हैं आसान।।
पृष्ठ-पृष्ठ में भाव हैं, शब्द-शब्द में ज्ञान।
पंक्ति-पंक्ति में रास्ते, पुस्तक दृष्टि समान।।
सकल विश्व का ज्ञान है, अतुलित बल-भंडार।
अहंकार को दूर रख, करें पुस्तकें प्यार।।
भीतर भरिये ज्ञान को, बाहर रहिये मौन।
पुस्तक बतलाती हमें, और बताए कौन।।
पुस्तक में धरती बसी, धरती में आकाश।
पुस्तक में सारा जगत, मत हो मनुज निराश।।
पुस्तक में तरकश छिपे, पुस्तक में ही बाण।
पुस्तक में घटना छिपी, इसमें छिपे प्रमाण।।
नई पहेली पुस्तकें, ये ही हल हैं जान।
जो समझा, उसकी हुईं, राहें सब आसान।।
धन, वैभव, सुख, संपदा, लाभ, प्रबल यश, मान।
पुस्तक से संभव सभी, मिलना है आसान।।
गुरु का इनमें ज्ञान है, सरस्वती का वास।
महालक्ष्मी की कृपा, देवों का इतिहास।।
जहाँ कहीं भी जाइये, पुस्तक रखिये साथ।
रहे अकेलापन नहीं, कभी न खाली हाथ।।
खूब खरीदो पुस्तकें, दो सबको उपहार।
ये भी कहिएगा उन्हें, पढ़ो ज़रा इक बार।।
समय-सृष्टि-संकल्पना, सबको सहज सहेज।
प्रिय पुस्तक का रूप दे, दिया धरा पर भेज।।
ऋषियों की हैं बानियाँ, पीरों की है पीर।
पुस्तक में सबकुछ मिले, कहते जिसे फ़क़ीर।।
क्या हैं बोलो पुस्तकें, सभी सृजन का रूप।
सुख की इनमें छाँव है, दुख की इनमें धूप।।
सजा-सजाकर मत रखो, पढ़ लो इनको मित्र।
इनकी कथनी है विलग, इनके भाव विचित्र।।
आदत है, फैशन नहीं, नहीं दिखावा यार।
पुस्तक को भी खोलकर, पढ़िए बरखुरदार।।
पुस्तक में नवरस मिलें, नवधा भक्ति प्रमाण।
मिलती हैं सोलह कला, षडचक्रों के प्राण।।
सेहत, ताक़त, स्वास्थ्य है, प्राणायाम, वियोग।
पुस्तक में सबकुछ मिले, पढ़ते जिनको लोग।।
हर पहलू की व्याख्या, हर गणना का ज्ञान।
है खगोल-भूगोल का, पुस्तक में विज्ञान।।
हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश का स्थान।
रामचरित में दे गए, तुलसी सबका ज्ञान।।
-चेतन आनंद