लॉकडाउन में नोएडा के मध्यम लोगों को भी सहयोग की बड़ी दरकार, प्रशासन मदद के लिए आगे बढ़े

बुरा लगे या भला, बात तो है खरी -खरी 


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नोएडा। नोएडा में लॉकडाउन पर कई ऐसे सामाजिक चेहरे आए हैं जो इस विकट की घड़ी में जरूरतमंदों के बीच सेवा भाव रखकर अपने सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। उनको मैं तहेदिल से शुक्रिया अर्पित करता हूं। बहरहाल, कुछ ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिसमें जरूरतमंदों को सहयोग देने की अपेक्षा बड़े स्तर से उपहास का ड्रामा भी रचा गया है। कई संस्थाओं ने तो राशन वितरण या भोजन वितरण में गरीबों का मजाक उड़ाने में भी नहीं हिचके हैं।


अलबत्ता, कुछ ऐसे मामले देखने में आए हैं, जहां भोजन वितरण के नाम पर मात्र पचास, सौ ग्राम खिचड़ी बांटकर हजार, दो हजार तक आंकड़े बताकर और अखबारों के माध्यम से शोहरत बटोरने की कोशिश की गई है। कई संस्थाओं ने तो बतौर प्रचार का तांडव ही मचाया है, हकीकत से वे दूर ही रहे। वे आज प्रचार के बल पर बड़े समाज सेवक, धर्मात्मा तक कहे जाने लगे हैं।


इतना ही नहीं, सरकारी संस्थाओं द्वारा भी बड़े पैमाने पर जन सहयोग लेकर रिकार्डो का अलमदार लगा दिया गया,  जैसे सारे जरूरतमंदों की जरूरत पूरी हो गई हो। देखा जाए तो भोजन वितरण प्रणाली में अनेक स्थानों पर भीड़ जमी रही और पब्लिक डिस्टेंसिंग सेे लोग दूर ही रहे। नोएडा में भोजन के लिए बनाए गए किचन की अपेक्षा अगर लोगों को सुखा राशन ही दे दिया गया होता तो आंकड़ों की बाजीगरी नहीं होती और जरूरतमंद लोग घर में ही परिवार के साथ भरपेट भोजन कर पब्लिक डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे होते और घर या झोपड़ी में ही सुरक्षित रह कर सड़क पर कटोरे छानने की जुर्रत नहीं करते।


शहर में सवाल उठ रहे हैं कि नोएडा में इतने बड़े पैमाने पर रिकॉर्ड तोड़ भोजन की व्यवस्था की आंकड़े जरूरतमंदों तक पहुंच पा रहा है या यह सब ड्रामा या आंकड़ों की बाजीगरी का खेल -खेला जा रहा है ! यहां लोगों के अपने-अपने तर्क हैं और सोशल मीडिया पर खुलकर इस बाबत बहस भी की जा रही है। कहा जा रहा है कि गीली भोजन वितरण प्रणाली से ज्यादा अच्छा व जरूरत होता उन लोगों को सूखा राशन देकर पूरे परिवार को पेट भरने की कोशिश में मदद करना। तब इसमें स्वार्थ और सम्मान पाने का इतना घुसपैठ नहीं होता और न आंकड़ों का इतना बड़ा पहाड़ खड़ा होता।


गरीबों को चाहे जितना मिला हो, समाज सेवकों द्वारा जितना उपलब्ध कराया गया हो, वह उन लोगों से ज्यादा कौन जान सकता है, जो लाइन में घंटों खड़े रहे जिन्हें मिला वह सौभाग्यशाली रहा और जिन्हें नहीं मिला वह नसीब का दोष देता रहा। बहरहाल, कुछ ऐसे भी जरूरतमंद रहे जो उस लाइन में कटोरा लेकर खड़े नहीं हो सकते थे और संभव है मरते दम तक भी वे वैसी लाइन में कटोरिया लेकर खड़े नहीं हो सकते। ज्यादातर इस संकट की घड़ी में रहनुमाओं द्वारा गरीबों के झुग्गी झोपड़ियों या अन्य गरीबों तबकों तक राशन सामग्री या भोजन पहुंचाने में जुटे रहे। लोग चर्चा कर रहे हैं की इस दौर में कुछ चंद लोगों ने मांगने का धंधा बना लिया और जरूरत से ज्यादा राशन सामग्री प्राप्त कर लिया, जबकि कुछ जरूरतमंद इससे वंचित रह गए।


आज नोएडा में एक वर्ग बड़े संकट की स्थिति से जूझ रहा है, वह साधारण वर्ग है। इसका कोई सुध लेने वाला नहीं है। वह स्वाभिमान की रक्षा करने में लगा हुआ है। उसके सामने बड़े ही बेदर्दी और विस्फोटक स्थिति सामने आ गई है। शहर में बड़े पैमाने पर एलआईजी में रहने वाले या नोएडा के गांवों में रहनेवाले किरायेदार साधारण लोगों के लिए कोई सुध नहीं लिया जा रहा है, जबकि आज ज्यादातर यहां ऐसे लोग संकट से गुजर रहे हैं। उनके घर राशन नहीं है, तो किसी के पास पैसे नहीं है। उनके सामने बड़ी विकट स्थिति है। आखिर मांगे तो किससे मांगे और उन्हें कौन देगा, क्योंकि उनकी श्रेणियां तो गरीबों से थोड़ी ऊपर है !


ऐसे में प्रशासन सहित अन्य संस्थाओं को चाहिए कि ऐसे लोगों की पहचान करे और इन्हें ज्यादा से ज्यादा उन्हें सूखा राशन वितरित करने में आगे आना चाहिए, ताकि वे भी अपने परिवार के साथ भरण- पोषण कर सके और इस संकट से  बाहर निकल सकें। यहां रहने वाले ज्यादातर साधारण लोग ही हैं जो छोटे-मोटे कंपनियों में नौकरी करते हैं या छोटे-छोटे दुकानों पर काम करते हैं या कहीं-कहीं छोटे-छोटे दुकान चलाते हैं। इनकी परेशानी को भी समझ कर इन्हें मदद करने में समाजसेवियों और प्रशासन को आगे आना चाहिए। साथ ही साथ यहां प्रशासन को राशन वितरण करने का जिम्मा उठाना चाहिए।बता दें कि यहां लोगों के बड़े पैमाने पर राशन कार्ड नहीं बने हुए हैं, जिससे इन्हें राशन सामग्री नहीं मिल पाता। ऐसे संकट काल में इन्हें संकट से उबरना ही होगा।


सरकार से इन नम्बरों से जनता को सहयोग मिल रहा है।


सरकारी हेल्पलाइन नं- 112
कंट्रोल रूम नंबर- 1800 419 2211
नोएडा जौन -8851066413
नोएडा अथॉरिटी-8860032939
पर कॉल करके मदद मांग सकते हैं।