बात पत्ते की पार्ट : 6
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चाहे भला मानो या मानो बुरा,
पर बात कहेंगे खरी - खरी ?
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देशव्यापी लॉकडाउन पर चौरसिया समाज के बड़े संगठनों का दावा करने वाले ऐसे लोगों की औकात और कार्यप्रणाली का पता चल चुका है। इन संगठनों के बीच एक बात अवश्य है कि वे संगठन दिखावे, बड़प्पन और चमचागिरी करने तक ही मशहूर रहा है। बातें बड़ी-बड़ी की जाती रही हैं, पर जमीनी हकीकत पर वह कभी नहीं उतरा है। ऐसे में चौरसिया समाज के उन बड़े संगठनों पर सवाल खड़े करना लाजमी है।
लोग जवाब भी मांग रहे हैं, लेकिन बड़े मंचों के समाज सेवक या नेता चुप व धृतराष्ट्र की भूमिका में कहे जा रहे हैं। लॉकडाउन की पृष्ठभूमि में चौरसिया समाज के बहुत संख्या में ऐसे लोग निचले पायदान पर खड़े हैं, जिसे उन्हें आज मदद की जरूरत है। आज वह अपने समाज की ओर न देखकर दूसरे वर्ग के लोगों से हाथ फैलाने के लिए मजबूर हैं। पर, किया ही क्या जा सकता है कि जब उनके समाज के पूंजीपति लोग बेरुखी नजरिए अपना रखे हैं, तो उनसे कुछ उम्मीद करना हथेली पर सरसों उगाने के समान है।
चौरसिया समाज में तकरीबन एक दर्जन बड़े संगठन हैं, जो देश में चौरसिया समाज के उत्थान, निर्माण तरक्की, प्रगति, शादी -विवाह जैसे अनेक समस्याओं का हल करने के लिए बड़े-बड़े दावे करते देखे जा रहे हैं। पर, आज लॉकडाउन के इस विभीषिका में चौरसिया समाज के वे लोग जरूरतमंदों को राहत पहुंचाने में पीछे रह गए हैं।
यहां प्रश्न विचारणीय है कि चौरसिया समाज की तरक्की, सामाजिक सुरक्षा रामभरोसे क्यों है ? जबकि सत्य, अर्ध्यसत्य यह भी है कि चौरसिया समाज के काफी लोग दूसरे समाजों की अपेक्षा काफी संपन्न भी हैं, धनपति, दानपति भी हैं। पर, उनका धन चौरसिया समाज के उत्थान में न लगकर दूसरे वर्गों में वाहवाही बटोरने में चला जाता है। वे अपने ही समाज के लोगों को बेवकूफ बनाने में आगे आते हैं।
यह विडंबना और विचित्र बात भी है कि चौरसिया समाज के लोग एक दूसरे का टांग खींचने, कमजोर करने में आगे आते हैं। वह अपने ही लोगों को नीचे, पिछड़े व दयनीय हालत में देखना चाहते हैं। वहीं, चौरसिया समाज में सबसे बड़ी कमियां उसके आपसी एकता को लेकर भी है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि चौरसिया समाज एक नहीं है और उसके सभी नेता अपने-अपने तरीके से रोटी सेकने के काम में जुटे रहते हैं। मजे की बात है कि चौरसिया समाज के अनेक संगठनों के पदाधिकारी और कार्यकर्ता सिर्फ बातें बनाते हैं, पर जमीनी कार्य नहीं कर पाते।
चौरसिया समाज की एकता सिर्फ बड़े-बड़े मंचों के उद्घोषणाओं तक ही सीमित रहा है। ऐसे संगठन के शीर्षस्थ लोगन न एक हैं और न एक होने देते, क्योंकि वह सिर्फ और सिर्फ अपने गौरव, सम्मान को बढ़ाने या हासिल करने की दुनिया में जीते हैं।