बात पत्ते की पार्ट : 5
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बुरा मानो या भला, पर बात कहेंगे खरी- खरी ***************************************
चौरसिया समाज के सैकड़ों संगठनों के हजारों कार्यकर्ताओं की लॉकडाउन पर भूमिका क्यों है गौण ? 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
नई दिल्ली। आज देश व्यापी कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण चौरसिया समाज के ज्यादातर लोगों की परिस्थितियां बहुत ही विकट स्थिति में आ पहुंची है। चौरसिया परिवार में 80% ऐसे लोग शामिल हैं जिनकी आजीविका रोज -रोज कमाने और रोज- रोज खाने पर टिकी हुई है। पर, इस लॉकडाउन की त्रासदी से कितने ही चौरसिया समाज के लोग सड़कों पर आ गए हैं और भुखमरी से जूझ रहे हैं।
वैसे, चौरसिया समाज में कुछ दशकों से नेताओं की बाढ़ आ गई है, क्योंकि एक पर एक संगठन खड़े होते रहे तो बहुतायत संख्या में देश के प्रदेशों तक समाज सेवकों की बड़ी फौज खड़ी हो गई। जिसको भी देखो, वही विभिन्न संगठनों का समाज सेवक बनने का दावा कर रहा है।
फेसबुक और व्हाट्सएप पर आज इसका प्रचार-प्रसार तेजी से देखा जा सकता है। इन संगठनों द्वारा एक दूसरे संगठन के विरुद्ध काट के लिए बंपर टीमें गठित गई है। पर, उनका काम ऐसा कि वह ढाक के तीन पात के समान बनकर रह गया है।
जब चौरसिया समाज के सैकड़ों संगठन है, तो हजारों कार्यकर्ता उस संगठन के पदाधिकारी भी होंगे, यह भी निश्चित है। पर, सामाजिक उत्थान, प्रगति और नव निर्माण का धरातल आज बंजर क्यों है? यह मेरा सवाल है। संभवतः आपका भी हो सकता है।
आज लॉकडाउन है तो त्रासदी है, भयावह आर्थिक संकट है। तो ऐसे में चौरसिया समाज के सेवकों का क्या रोल होना चाहिए, यह भी एक प्रश्न खड़ा है? अगर चौरसिया समाज के सैकड़ों संगठन है, तो उनके हजारों पदाधिकारियों द्वारा यदि चौरसिया समाज के एक-एक जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए हाथ बढ़ाया गया होता तो वे चौरसिया समाज में एक अच्छी पहल और एक नेक कार्य की शुरुआत कर रहे होते और अब तक हजारों चौरसिया लोगों का कल्याण हो गया होता। वह एक अच्छी पहल होती और वे एक नेकदिल कार्य कर रहे होते। वे समाज को सेवा रूपी आशीर्वाद से सिंचित कर रहे होते। हमारा समाज बदलाव की ओर अग्रसर रहता और इस मुसीबतों के पहाड़ से जरूरतमंद बाहर निकल रहे होते।
हम बात करते हैं विभिन्न संगठनों के मंचों की, तो वहां चेहरे दिखाने के लिए और अपने को श्रेष्ठ और धनपति साबित करने के लिए खूब पैरवी होते देखी गई है। उस मंच पर पहुंचने के लिए वे अपनी तिजोरी खोल देते हैं। जो जितना अधिक धन देता है, उसकी उतनी ही मंचों पर जय- जयकार होती है। बढ़ाई के बड़े बड़े पुल बांधे जाते हैं। तो आदरणीय, सम्माननीय व चौरसिया समाज के बड़े जन सेवकों का तमगा देने व घोषित करने के साथ दानी व्यक्ति की संज्ञा से विभूषित भी कर दिया जाता है।
सवाल है कि ऐसे लोग लॉकडाउन में अपने समाज को सेवा देने की जगह कहां छुपे हैं, कहां घुसे हैं? वे धनपति कुबेर कहां गए? वह बड़े दानी कहां गए? कहां गए वे आदरणीय, सम्मानीय महापुरुष ? जब वे बड़े मंचों के लिए दान दे सकते हैं, तो इस विषम परिस्थिति में चौरसिया समाज के जरूरतमंद लोगों को मदद क्यों नहीं कर सकते? क्या वह मंचो पर दिखावे के लिए नौटंकीबाजी कर रहे थे या वह असली समाज सेवक के रोल में थे। यह सवाल है?
आज हमें ऐसे समाज बनाने की जरूरत है, जो जरूरतमंदों की मदद कर सके, उन्हें राहत देने का काम कर सके। यह शानदार शुभ अवसर है। तो आइए, आगे बढ़िए और एक समर्थ व्यक्ति होने का ताकत दिखाइए।
एक- एक जरूरतमंदों का मदद करें। अगर चौरसिया समाज के एक हजार व्यक्ति भी एक-एक व्यक्ति की मदद कर दे तो 1000 का आंकड़ा बहुत होता है। मतलब हमारा समाज लॉकडाउन की इस विषमता से बाहर निकल जाएगा। यह पुण्य का साधारण काम नहीं, महापुण्य का काम है और अच्छे समाज सेवक बनने का भी। तो देर न करें, नहीं तो अंधेर हो जाएगा। आइए, आगे बढ़िए। यह साबित कर दें कि चौरसिया समाज एक है, और हम एक ताकत से बंधें हैं और बंधे रहेंगे।
जय चौरसिया समाज! जय कुलवंश चौऋषि जी महाराज!
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