नोएडा। औद्योगिक नगरी नोएडा में पूर्वांचल लोगों की बहुतायत है। यहां तकरीबन 50% से ज्यादा पूर्वांचल के लोगों का बड़े-बड़े औद्योगिक इकाइयों सहित कारोबार भी है। बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ियां और शानदार भवन भी है। यहां बड़ी संख्या में पूर्वांचल के श्रमिक वर्ग से जुड़े हुए लोग भी रहते हैं।
लॉकडाउन से पहले स्थिति सामान्य थी और तब पूर्वांचल के बड़े-बड़े नेताओं और बड़े-बड़े समाजसेवियों के बड़े-बड़े आयोजनों पर जमकर प्रदर्शन किया जाता था, लेकिन कहीं से इस बाबत कोई सवाल खड़ा नहीं होता था। चूंकि लॉकडाउन है तो यहां रहने वाले कामगार, श्रमिकों, मजदूरों को भयंकर आर्थिक संकट का सामना करना करना पड़ रहा है। ऐसे में यहां देश के विभिन्न भागों के संभ्रांत लोगों द्वारा श्रमिकों व मजदूरों के लिए राहत सामग्री सहित भोजन का प्रबंध किया गया और उनके द्वारा किए गए इस उपकार और उपकृत का बड़ा लाभ देश के सभी क्षेत्रों से आए श्रमिकों, मजदूरों को मिला है, लेकिन लॉकडाउन कि इस भयावहता में पूर्वांचली के बड़े-बड़े वे धनाढ्य उन्हें कुछ मदद करने को आगे नहीं आए।
सोशल मीडिया के माध्यम से मैंने पूर्वांचल नेताओं को जागृत करने के लिए इस बाबत लिखा था और कटाक्ष भी किया था, लेकिन उनपर कोई असर न पड़ा। सभी चुप रहे और घरों में छुपे रहे, ताकि उनकी जेब न झर जाए। पूर्वांचली नेताओं के इस कृत्य पर जबरदस्त प्रतिक्रिया भी देखने को मिली और यह कहा गया कि दरअसल वे ज्यादा अवसरवादी होते हैं और मौके का पूरा फायदा उठाते हैं। वे बड़े बड़े चंदा आयोजनों के नाम पर इकट्ठा करते हैं और घालमेल कर हड़प जाते हैं। आज जब जरूरत है संकट काल से जूझते जरूरतमंदों के लिए तो वह चुप हैं, शांत चित्त बैठे हैं और पूर्वांचली क्षेत्र के संकट में फंसे जरूरतमंदों को देखकर मंद- मंद मुस्कुरा रहे हैं।
इस दौर में नोएडा से बड़े पैमाने पर श्रमिकों का पलायन भी हो रहा है और गिरते- पड़ते लंबी सफर में वे नन्हे नन्हे बच्चों के साथ अपने घर को लौट रहे हैं, क्योंकि उन्हें पहले सरकार से उम्मीदें थी, सरकार से न मिली तो यहां पूर्वांचली नेताओं पर उनकी निगाहें टिक गई, लेकिन जब यहां से वे उनके बेरुखी को देखा तो अपनी जान बचाने के लिए व भूख मिटाने के लिए पैदल ही घर के लिए निकल पड़े। उनकी दर्द की गाथा और पीड़ा को समझने में यहां मौजूद बड़े-बड़े दिग्गज पूर्वांचली भी न समझ सके और उन्होंने अपनी अंतरात्मा को भी टटोलने की जरूरत नहीं समझी। कहा जा रहा है कि ज्यादातर श्रमिक इन्हीं धनाढ्यों के यहां नौकरी अथवा काम करते थे।
भला हो पूर्वांचल के सबसे पुराने समाज सेवक डॉक्टर सी. बी झा का जिन्होंने ऐसे लोगों का दर्द को समझा और अपने समर्थ के अनुसार जरूरतमंदों को मदद करने में आगे आ गए। उन्हें कई अन्य वर्गों का समर्थन भी मिल रहा है।
डॉ. झा ने बताया कि उन्हें अटटा गाँव से महिलाओं और ग्रामीणों की तरफ से यह प्रार्थना की गई है कि उनके लिए दाल और चावल की व्यवस्था की जाएl अट्टा मार्किट के प्रेसीडेंट डा. सी.बी झा द्वारा इस बात का पता होने पर संकल्प इंडिया चैरिटेबल ट्रस्ट और निवेदा फाऊंडेशन
के सौजन्य से आज की सबसे बड़ी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पलायन करने की सोच रहे 50 मजदूर परिवारों के लिये सूखा राशन (दाल चावल) सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखते हुए वितरण किया। इस मौके पर संकल्प इंडिया की प्रेसीडेंट श्रीमती रेखा शर्मा ,निवेदा फाऊंडेशन की प्रेसीडेंट श्रीमती सिंधु रवि, राजीव मलहोत्रा,ऋशि,अमित सक्सेना, दिनेश करन आदि उपस्थित रहे।