नई दिल्ली। लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा की जा चुकी है। लॉकडाउन पर हर क्षेत्र से जुड़े संगठनों का अपने- अपने ढंग से कारोबार पर हानि-नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। ऐसे में मीडिया संगठन भी पीछे नहीं है।
इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी (आईएनएस) के अध्यक्ष शैलेश गुप्ता ने केंद्र सरकार से समाचार/ पत्रों को लॉकडाउन पर हुए असर का जिक्र करते हुए पत्र लिखा है। श्री गुप्ता ने केंद्र सरकार से समाचार-पत्रों को राहत पैकेज देने की मांग की है।उनके मुताबिक पिछले 2 माह में समाचार-पत्र को तकरीबन 4 से 5 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है और 6-7 माह का आंकलन में उन्होंने 15 हजार करोड़ का नुकसान होने की बात कही है।
आईएनएस जो देश के 800 समाचार- पत्रों का प्रतिनिधित्व करता है, उसके अनुसार लॉकडाउन से समाचार पत्र उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। न सरकुलेशन हो पा रहा है और न समाचार पत्रों को विज्ञापन ही मिल रहा है। इस उद्योग का भट्टा बैठ रहा है। उन्होंने समाचार- पत्रों पर लगने वाले 5 फ़ीसदी कस्टम टैक्स को हटाने की मांग की है। उन्होंने बताया कि लॉक डाउन से समाचार -पत्रों से जुड़े पत्रकारों, छपाई करने वालों व अखबार वितरकों को भारी नुकसानहो रहा है और समाचार -पत्र उद्योग से जुड़े प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तकरीबन 30,00000 लोग प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने प्रिंट मीडिया का बजट भी 100% बढ़ाने की वकालत की है। साथ ही विज्ञापन संबंधी बकाया राशि का सभी राज्यों द्वारा शीघ्र भुगतान करने की मांग भी की है।
निश्चय ही लॉकडाउन से प्रिंट मीडिया के पत्रकार सबसे ज्यादा प्रभावित माने जा रहे हैं। इन्हें सरकार से या जन समुदाय से कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है। इस संकट काल से जूझते हुए भी पत्रकार आम जनता तक खबरें पहुंचा रहे हैं, बावजूद न तो जनप्रतिनिधियों, न सामाजिक संगठनों न समाजसेवियों और न रहनुरमाओं से कोई सहयोग मिल पा रहा है। वैसे, सभी मीडिया में चमकना तो चाहते हैं, पर पत्रकारों को मदद करने के नाम पर उनकी ज़मीर मर जाती है।
आज लॉक डाउन पर ऐसे बहुत से पत्रकारों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है। कल का भविष्य उनके लिए अंधकारमय- सा हो गया है। वे पत्रकार दूसरों की आवाज चाहे जितनी बुलंदी या धारदार शब्दों में उठा पाते हों, लेकिन इनकी दुनिया दीपक तले अंधेरे के समान है। वे सबकी बात तो उठाते हैं पर, अपनी बात उठाने के लिए पीछे रह जाते हैं। इसके बावजूद भी पत्रकारों पर तरह-तरह के लांछन ठोक दिए जाते हैं। उन्हें बड़े-बड़े कमीनापन शब्द तक कहे जाते हैं। लेकिन वे पत्रकार हैं और देश की जनता को खबरों के माध्यम से जन- आवाज बनते रहते हैं।