पान किसानों की दर्द-ए- गाथा

बात पत्ते की पार्ट - 4
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चाहे बुरा मानो या अच्छा, पर बात कहेंगे खरी - खरी
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चौरसिया समाज में नेतृत्व का झूठे दम भरनेवाले नेताओं की हो रही सोशल मीडिया पर ख़ोज, पर वे हैं भूमिगत
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कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए जारी किए गए लॉकडाउन से पान उत्पादक लोगों के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। पान उत्पादक किसान बेबस, लाचार व मजबूर नजर आ रहे हैं। लॉकडाउन में दुकानें बंद होने, मांगलिक कार्यक्रम रुक जाने से पान की बिक्री तकरीबन समाप्त हो गई है। बरेठ में ही पान के पत्ते गिर रहे हैं। उसे बटोरकर कूड़े के ढ़ेर पर फेंका जा रहा है। इससे पान उत्पादक लोग काफी चिंतित हैं। उनके सामने आजीविका का प्रश्न सुरसा के मानिंद मुँह बाये खड़ी है। ग़रीबी तो ऐसी की मत कहिए। चूल्हे भी जलने के लाले पड़ रहे हैं। भूखमरी की स्थिति आ पड़ी है। पर उनके नेता जो उनके छाती पर चढ़कर समाज के मसीही बनने की नौटंकी कर रहे थे, वे नौटंकी बाज़ लोग पता नहीं किस खोह में जा छुपे हैं और कब निकलेंगे, यह कहना बेहद मुश्किल है। पर, जैसे ही कोरोना महामारी का बादल छंटेगा, वैसे ही वे बुल से निकल पड़ेंगे, यह तय माना जा रहा है। 


चौरसिया समाज के बड़े संगठनों के नेता बनने के दम भरनेवाले आज मुंह चुराकर बैठे हुए हैं। बैठे नहीं, छूपे हुए हैं। इस बिकट घड़ी में उनकी जुबां भी हिल नहीं रही है। उनके पास बोलने के लिए दो शब्द भी कम पड़ गये है। ऐसे में चौरसिया समाज का विकास करने के लिए मंचों का इस्तेमाल करनेवाले ऐसे नेताओं के प्रति आज चौरसिया समाज शर्मसार भी है, क्योंकि उन्हें समाज के धोखेबाज नेताओं के बारे में जानकारी मिल रही है। उन नेताओं के कथनी- करनी का भेद भी अब चौरसिया समाज के सामने जगजाहिर हो रहा है।


अच्छा हुआ कि कोरोना महामारी के इस संकट काल में चौरसिया समाज ने भी जान लिया कि हमारे समाज के नेता कैसे हैं और उनका चेहरा भी कैसा है ? कहते हैं कि संकट काल में ही व्यक्ति की पहचान हो जाती है और चौरसिया समाज ने इस संकटकाल में यह सब जान लिया है। पर, सवाल यह है कि आने वाले दिनों में क्या वही चौरसिया समाज का पुनः नेता होने के लिए दम भरने लगेंगे?  फिर बड़े मंचों पर आकर झूठी घोषणाएं कर फिर वाहवाही और तालियां बटोरने लगेंगे। मंच और माला का इस्तेमाल करने लगेंगे? फिर अपने -अपनों को चौरसिया समाज के अलंकृत रत्न से विभूषित कर एक बार फिर वह अपना समाज सेवा का चोख- धंधा चलाने लगेंगे ? चौरसिया समाज का आगामी भविष्य क्या होगा, यह तो समय के गहराइयों में छुपा हुआ है?


संभव है,  इस बीच कोई नया नेता पैदा हो और वह समाज में एकता के बिखरे कड़ी को एकजुट करे। यह निश्चित है कि लॉकडाउन में जूझ रहे चौरसिया समाज के उन लाखों लोगों को मदद कराने में जो आगे बढ़ पाएगा, वही चौरसिया समाज का शीर्षस्थ नेता होगा। कहते हैं कि जब समय परिवर्तन होता है, तो सब कुछ ठीक होता है और यह उम्मीद हम भी कर रहे हैं और आप भी कर सकते हैं।


पान और चौरसिया समाज की गौरव गाथा आज से ही नहीं, बल्कि सदियों से ही महानता पर टिकी रही है। पर, आज समाज में बिखराव और नेतृत्व विहिनता के कारण हमारा समाज बहुत पीछे चला गया है। अगर दो-चार नेता भी  पैदा हो चुके हैं तो वह अपने तिजोरी भरने और चौरसिया समाज से ताली पिटवाने तक ही सीमित रह गए हैं। बाकी उनके बस में कुछ नहीं रहा है, सिर्फ समाज की आंखों में धूल झोंकने के सिवा।


खाइके पान बनारस वाला, ये गीत 80 के दशक में, फिर 2000 के दशक में काफ़ी मशहूर हुआ। ये पान की स्वीकार्यता ही थी जिसने महानायक अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के साथ पूरी दुनिया को इस गीत पर थिरकने को मजबूर कर दिया। भारत की बात करें तो पान को विशेष स्थान प्राप्त है। पूजा- पाठ से लेकर, होठों की लाली बनने तक पान का भारतीय जीवन में गहरा दखल है। कोरोना के वर्तमान वैश्विक संकट ने हर उत्पाद को प्रभावित किया है। पान भी इस कुप्रभाव से अछूता नहीं हुआ लेकिन अब सरकार के पान मंडी खोलने के आदेश से पान की खेती करने वाले किसानों को लाभ मिलने की संभावना बढ़ गयी है। अगर बात करें, मध्य प्रदेश का पान का तो, वह देश के अन्य राज्यों में सप्लाई किया जाता है। एपमी से लगे बार्डर वाले राज्यों में पान की विशेष डिमांड है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और मुंबई में पान को एक्सपोर्ट किया जाता है। मध्य प्रदेश के पान को देश के बाहर भी चहेतों के पास भेजा जाता है जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश में पान लवर्स इसकी बेहद डिमांड करते हैं।


पान की सालाना फसल को मार्च-अप्रैल में तोड़ा जाता है। लॉकडउन के कारण मध्य प्रदेश के ज्यादातर जिलों में पान की दुकानें और परिवहन बंद होने से 90 प्रतिशत फसल सड़ चुकी है जिससे राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ है। उधर, पान किसान और व्यापारियों का कहना है कि एक किसान पान की 15-20 पारी लगाता है। एक पारी में 8-10 हजार की लागत आती है, लेकिन लॉकडाउन ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है। पान की खेती करने वालों की इस बार भी लागत भी नहीं निकली है। छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, रीवा, सतना, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, दमोह, सागर, रायसेन, होशंगाबाद, नीमच, मंदसौर, रतलाम, देवास, उज्जैन, इंदौर, ग्वालियर में पान की खेती की जाती है जहां से पान अन्य राज्य और देशों को भेजा जाता है।


प्रदेश में जहां पान लवर्स को लॉकडाउन के दौरान पान नहीं मिल पाया, वहीं पान की खेती और व्यवसाय से जुड़े लोगों को भी नुकसान झेलना पड़ रहा है। प्रदेश में लगभग 80 हजार गुमठी, 20 हजार पान किसान, 20 हजार फुटकर व्यापारी, 5 हजार थोक व्यापारी हैं जो पान की बिक्री नहीं होने से परेशान हैं। राज्य में एक महीने में लगभग 100 करोड़ का नुकसान बताया जा रहा है। मध्यप्रदेश से कुछ लोग पान कृषकों को मुआवजा देने की मांग सरकार से कर रहे हैं।  सौजन्य : फाइल फोटो.