सोशल मीडिया में फेक न्यूज का उपयोग देश की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती

सोशल मीडिया में फेक न्यूज़ का उपयोग,  देश की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती



नोएडा। अपराध शैतानी दिमाग की उपज है। इसका जीता जागता उदाहरण है सोशल मीडिया का दुरूपयोग का नया प्रयोग, फेक न्यूज़। वैश्विक महामारी के इस संकट में, सोशल मीडिया जोकि सूचना तंत्र का एक सर्व सुलभ वा सशक्त माध्यम बन गया है, का उपयोग / दुरुपयोग दुष्प्रचार के लिए फेक न्यूज़ के माध्यम से सुनियोजित रूप से निरंतर हो रहा है, जोकि सामूहिक तथा व्यक्तिगत अपराध के लिए प्रेरणा बन रहा है। यह बातें भूपेन्द्र प्रताप सिंह उप महाधिवक्ता (उत्तराखंड सरकार) उच्चतम न्यायालय, नई दिल्ली ने कहा है।


फेक न्यूज़ के परिणाम स्वरूप विभिन्न अपराध उदाहरण स्वरूप विगत दिनों में देखने को मिले, जिससे ना सरकार बल्कि कानूनविदो को भी चिंतित किया। फलत: सरकार को कानून में बदलाव करना पड़ा साथ ही कई दिशा निर्देश सोशल मीडिया से संबंधित देने पड़े।


हाल के दिनों में फेक न्यूज़ ने न्याय शास्त्र के सिद्धांतों को झकझोरा है। साथ ही Narration वा perception को भी बदलने की भरपूर कोशिश की है परिणाम स्वरूप एक नए तरह के अपराध का सिलसिला अवतरित हुआ है जिसमें फेक न्यूज़ की भूमिका है। यह साइबर क्राइम का ज्वलंत उदाहरण है, कोरोना योद्धाओं पर हमले भी उदाहरण स्वरूप शामिल किए जा सकते हैं। यह कहना उचित होगा की यह सब देश की आंतरिक सुरक्षा से संबद्ध होते हैं और और एक भय का वातावरण आंतरिक सुरक्षा को लेकर घनीभूत करता है और इस तरह लगातार आंतरिक सुरक्षा को एक नई चुनौती मिल रही है।


फेक न्यूज़ अपराध की प्रेरणा ही नहीं दे रहा है बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को अपराध के लिए उद्वेलित कर रहा है जिसके पीछे एक संगठित आपराधिक सोच और सोच वाले लोग हैं, जोकि दिए गए उद्देश्य की पूर्ति के लिए योजनाबद्ध रूप से सक्रिय हैं।


ऐसे में सरकार ने The Epidemic Disease Dct (Amendment) Ordinance, 2020, Epidemic Disease act 1897 में अमेंडमेंट किया है। सरकार को 123 वर्षों बाद यह परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़ी है यह Amendment , Disaster Management Act 2005, की उपस्थिति के बावजूद भी आवश्यक लगा है। निसंदेह फेक न्यूज़ का दुष्प्रभाव जो अभी दिखा है यह दूरगामी है और यह दर्शाता है कि हमारी आंतरिक सुरक्षा को कितनी गहराई से यह नुकसान पहुंचा सकता है। आज यह प्रश्न विचारणीय है कि फेक न्यूज़ जनित व प्रेरित अपराध का समन और निदान कैसे हो? क्या उपलब्ध कानून पूरी तरह से सक्षम है? क्या यह कानून और ऑर्डिनेंस पूरी तरह संविधान की परिधि व सीमा में है? क्या इंडियन पेनल कोड, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, Epidemic Disease act, Information technology act व अन्य कानून इस तरह के नए अपराधों के शमन वा रोकथाम के लिए पर्याप्त हैं?