लॉकडाउन के अनलॉक में भी बेजुबान बने हुए हैं चौरसिया समाज के शीर्षस्थ नेता


नई दिल्ली। लॉकडाउन 5.0 के अनलॉक पर भी चौरसिया समाज के नाम पर बने शीर्षस्थ संगठनों के पदाधिकारी क्या बेजुबान बने ही रहेंगे या समाज के लिए कुछ करेंगे या आवाज भी बुलंद करेंगे ? इसमें अब भी मुझे संसय एवं शंका है।


दरअसल, पूरे लॉकडाउन अवधि में उनका चुप्पी साधे रहना निश्चय ही चौरसिया समाज में गलत संदेश गया है। इस दौरान उनके कार्य प्रणाली की वह बातें भी उभर कर सामने आ गई है जो पर्दे में छिपा हुआ था।


समय सदा एक-सा नहीं रहता है। बदलाव प्रारब्ध का नियम है। संकट ही एक ऐसा काल होता है जो परिवार से परिवार के बीच के संबंध को बता देता है कि उसमें मधुरता, खटास या स्वार्थ भरा पड़ा है। समाज के संगठनों पर भी यह नियम लागू होता है।


लॉकडाउन के संकटों के बीच चौरसिया समाज के भाग्य विधाता, निर्माता व बड़े-बड़े आयोजनों का ड्रामा करने वालों की ऐसी भद पिट गई कि मत पूछिए। उनका फाइव स्टार होटलों के शाही रंगे और चौरसिया समाज के माननीय, सम्माननीय और आदरणीय बने रहने वाले ऐसे लोगों ने अपनी  तेवर खोल कर दिखा दिया कि इससे ज्यादा उनकी औकात नहीं थी।


लोगों ने जरूरत से ज्यादा उन पर भरोसा किया था।  दरअसल वह नकली, फर्जी एवं धूर्त टाइप के लोग हैं। उनकी मंशा कुछ अलग ही थी जिसे एक दशक तक समाज ने देखा है कि वह कैसे परिवारवाद और चाटुकार मित्रों के सहयोग से समाज की आँखों में धूल झोंक रहे थे।


पान व्यवसाय को इस के कोरोना काल में बड़ा झटका लगा है। सरकार से सहयोग मिलने की उम्मीद थी, लेकिन चौरसिया समाज के बड़े बड़े संगठनों में मलाईदार पदों पर बैठे लोगों ने सरकार से वाजिब मांग उठाने में भी पीछे रह गए, क्योंकि उनका समाज से सिर्फ और सिर्फ मतलब था सम्मान पाने की भूख, तालियों की गड़गड़ाहट और मंचों से जय जयकार सुनने की लिप्सा। क्या चौरसिया समाज ऐसे ही लोगों से आगे बढ़ सकता है ? नहीं, कतई नहीं।  जो चौरसिया समाज के हित में आवाज नहीं उठा सकता, ऐसे संगठनों का पतन हो जाना ही अच्छा है। अगर पतन न भी हो तो वैसे लोगों को बाहर करने का समय आ गया है। वे वैसे भी बिना बेइज्जत के संगठन छोड़ने वाले नहीं हैं।


ऐसे लोगों को माननीय, सम्माननीय और आदर देना सबसे बड़ी भूल है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकता है कि कोरोना काल में संकट काल से जूझ रहे देश के लाखों चौरसिया परिवार त्राहिमाम- त्राहिमाम कर रहे हैं, लेकिन इनके जुबान पर मरहम के दो शब्द भी मरी हुई है। इनकी आत्मा भी नहीं धिक्कारा करती।


ये वही भाग्य विधाता लोग हैं, जब इन्हें आवश्यकता थी आगे बढ़ने व सत्ता में मुकाम हासिल करने की तब समाज और समाजिक शक्ति को दोहन करने के लिए गांव गांव शहर शहर आयोजनों के नाम पर चंदे की भीख मांग रहे थे और अपने लिए समर्थन के लिए हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे थे और जब वह बड़े बन गए और सत्ता सुख भोगने लगे तो चौरसिया समाज को यही आंख दिखाने में लगे हुए हैं।


निश्चय ही ऐसे लोग सामाजिक आईने में खुदगर्ज लोग हैं।  यह बड़े बेशर्मी, चोर और बेईमान टाइप के लोग हैं जो समाज को अपने शोहरत और सम्मान के लिए इस्तेमाल किया है। अब समाज को भी चाहिए कि ऐसे लोगों का प्रतिकार करें और निस्वार्थ भाव से इन्हें समाजिक मापदंडों से बाहर करें।


इन दिनों देश के विभिन्न भागों में पद वितरण का चलाया जा रहा है जिसमें किसे पद दिया जा रहा है, इसका भी मापदंड का ख्याल नहीं रखा जा रहा है। ऐसे संगठन के कर्ता-धर्ता संगठन में काबिज हो गए हैं जिनका इतिहास बेहद ही कलंकित और शर्मसार करने वाला रहा है। तो ऐसे में चौरसिया समाज के हर पढ़े-लिखे जागरूक व बुद्धिमान लोगों को एक बहस करने की जरूरत है और यह तय करने की भी जरूरत है कि जिसे रेबड़िओं की तरह पद बांटा जा रहा है, क्या वे इस योग्य हैं और जो पदों को बांटने में लगे हुए हैं, क्या वह इस पद के काबिल हैं।